कीर ने जब यह जीवनी पूरी कर ली तो उन्होंने इसे बाबा साहब को भेजा. इस जीवनी के हिंदी अनुवादक गजानन सुर्वे लिखते हैं, ‘चरित ग्रंथ समाप्त होने पर उसकी प्रति आंबेडकर को पढ़ने के लिए देकर उनसे कुछ प्रशंसोद्गार सुने हैं.’ (डॉ बाबासाहब आंबेडकर जीवन चरित, प्रकाशक: पापुलर प्रकाशन)