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Sant Ravidas : जानें क्‍यों सतगुरु रविदास ने सदैव निराकार को अपनाया?

सतगुरु रविदास (Saint Ravidas) उन चुनिंदा महापुरुषों में से हैं, जिन्होंने अपने वचनों से पूरे संसार में एकता और भाईचारे पर जोर दिया. उनकी महिमा देख कई राजे और रानियां उनकी शरण में आए. संत रविदास जी ने जीवनभर समाज में फैली कुरीतियों मुख्‍यत: जात पात के अंत के लिए काम किया. संत रविदास धार्मिक कट्‌टरता के घोर विरोधी थे.
संत रविदास औपचारिक पूजा, अर्चना, कर्मकांड, बाह्य आडम्बर, जप, तप, तीर्थ यात्रा धार्मिक ग्रंथों के पाठ को महत्व नहीं देते थे. भाव विभोर होकर कीर्तन करना उनकी साधना का मुख्य अंग था. उन्होंने सदैव निराकार को अपनाया.
संत रविदास अक्सर कहा करते थे, ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा.’ (Man Changa to kathoti mein ganga)
उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति संसार के 68 तीर्थ स्थलों की यात्रा करे, लेकिन यदि उसका आचरण ठीक नहीं है तो वह अवश्य ही नर्क का भोगी होगा.”
सतगुरु रविदास जी के पद
अब कै’रैदासा’॥
रविदास जी के दोहे
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात। रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
मन चंगा तो कठौती में गंगा
तुम कहियत हो जगत गुर स्वामी।। हम कहियत हैं कलयुग के कामी।
मन ही पूजा मन ही धूप ,मन ही सेऊँ सहज सरूप
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास

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