भारतीय संविधान के प्रावधान, जो दलितों को देते हैं विशेष अधिकार…

(ब्‍लॉग- अमित साहनी)

भारतीय संविधान सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में समानता का अधिकार देता है. भारतीय संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों का वर्णन है.

आर्टिकल 14- समता का अधिकार (Right to Equality)
आर्टिकल 14 किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के सामान सरंक्षण से वंचित नहीं करेगा. भारतीय सविधान में शैक्षिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के पक्ष में कानून बनाने और आरक्षण देने सम्बंधित प्रावधान है और जिसके तहत न केवल शैक्षिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग बल्कि महिलाओ और बच्चो के पक्ष में भी कानून बनाने का प्रावधान है और ऐसे कानून सांविधानिक रूप से पूर्णतय वैध होंगे.

आर्टिकल 15 और 16 में शैक्षिक और सामाजिक रूप से कमजोर नागरिकोंं के उत्थान के लिए जरुरी प्रावधान हैं, जिसके तहत इस वर्ग को शिक्षा, नौकरियों और प्रमोशन में विशेष दर्जा मिलता है और इसका एकमात्र उद्देश्य है कि इस वर्ग के पिछड़ेपन को दूर कर इसे सामाजिक समानता दिलाकर बाकी वर्गों के बराबर दर्जा देना है.

आर्टिकल 15 कहता है कि; राज्य अपने किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, नस्ल और जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा.

आइये जानते हैं क्या कहता है अनुच्छेद 15 ?

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धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध (Discrimination on grounds of religion, race, caste, sex or place of birth)

(1) राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा.
(2) किसी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, जन्मस्थान के आधार पर या इनमें से किसी के आधार पर निम्‍न संबंध में भेदभाव नहीं होगा-

(ए) दुकानों, सार्वजनिक रेस्त्रां, होटल और सार्वजनिक मनोरंजन के साधन तक पहुंच, अथवा
(बी) कुएं , जलाशय, स्नानघाट, सड़क और सार्वजनिक आश्रय जिसका रखरखाव पूर्णतः या अंशतः राज्य निधि से हो रहा है या आम जनता के प्रयोग के लिए समर्पित हो, का प्रयोग

(3) राज्‍य महिलाओं व बच्‍चों के लिए विशेष प्रावधान बना सकते हैं.
(4) इस अनुच्छेद में या अनुच्छेद 29 (2) का कोई विषय राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े नागरिकों की प्रगति के लिए कोई विशेष प्रावधान बनाने से नहीं रोकेगा.

अनुच्छेद 15 (4) संविधान में संवैधानिक (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ा गया, इसने कई अनुच्छेदों को संशोधित किया. इस प्रावधान ने राज्य को तकनीकी, यांत्रिकी और चिकित्सा महाविद्यालयों तथा वैज्ञानिक व विशेषीकृत कोर्स के संस्थान समेत शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए सीटें आरक्षित करने हेतु अधिकार संपन्न बनाया है.

आर्टिकल 16 एम्प्लॉयमेंट में समान अवसरों की बात करता है… (Equality of opportunity in matters of public employment)
(1) सभी नागरिकों के लिए एम्प्लॉयमेंट या अपॉइंटमेंट के सामान अवसर होंगे.
(2) एम्प्लॉयमेंट के मसलों में राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा.
(3) राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेशों में नियुक्ति के सन्दर्भ में सरकार उस राज्य के निवासी होने बाबत कानून बना सकती है.
4) सरकार पिछड़े नागरिकों जिनका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, उनको नौकरियों में आरक्षण देने बाबत कानून बना सकती है.
4 A) सरकार पिछड़े नागरिकों जिनका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, उनको नौकरियों की प्रमोशन और परिणामी सेनिओरिटी में प्रमोशन में आरक्षण बाबत कानून बना सकती है. 
4 B) सरकार पिछड़े नागरिकों जिनका सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है, और जिनकी रिक्तिया एक वर्ष में भरी नहीं गयी है उनके सम्बन्ध में कानून बना सकती है कि ऐसी रिक्तियां अगले साल भरी जाए और उसमें अगले साल कि होने वाली रिक्तिओं में जोड़कर उसे अगले साल कि अधिकतम 50 फीसदी सीमा में न गिना जाए.

(एडवोकेट अमित साहनी जनहित मुद्दों, दलितों एवं वंचित वर्ग के कानूनी अधिकारों को लेकर सक्रिय हैं और दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में दर्जनों जनहित याचिकाएं डाल उनके हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं…)

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