दलितों को हमेशा याद रखना चाहिए ‘2 अप्रैल 2018’ का भारत बंद

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नई दिल्ली. 2 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास में भारत के नाम दर्ज है. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट (Scheduled Castes and Scheduled Tribes Act) पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फ़ैसले के विरोध आज ही के दिन 2018 में दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया था.

भारत बंद (Bharat Band) को कई राजनीतिक दलों और कई संगठनों ने समर्थन भी दिया. भारत बंद के दौरान दलितों ने मांग की अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन को वापस लेकर एक्ट को पहले की तरह लागू किया जाए. 2 अप्रैल को भारत बंद हुआ वह दलित-आदिवासी आंदोलन के इतिहास में यादगार रहेगा. अगर ये भारत बंद नहीं रहता तो दलित समुदाय को सुरक्षा प्रदान करने वाला कानून शायद खत्म होने की कगार पर होता.

2 अप्रैल को भारत बंद हुआ वह दलित-आदिवासी आंदोलन के इतिहास में यादगार रहेगा. यदि यह आंदोलन नहीं होता तो दलित-आदिवासी समुदायों को थोड़ी बहुत सुरक्षा प्रदान करनेवाला एट्रोसिटीज़ का कानून भी शायद खत्म हो चुका होता या खत्म होने की कगार पर होता.

बंद के दौरान कई लोगों की मौत और हिंसा
भारत बंद के दौरान विभिन्न राज्यों में हिंसा देखने को मिली थी, जिसमें अन्य जाति के लोग और दलितों में भारी हिंसा हुई. मध्य प्रदेश के ग्वालियर, भिंड और मुरैना जिले में उपद्रव के दौरान चार लोगों की मौत हुई. ग्वालियर में एक कार्यकर्ता की गोली लगने से मौत हुई थी लेकिन गोली कहां से चली, किसने चलाई, यह आज तक किसी को नहीं पता.

दलित और आदिवासी को दबाने की कोशिश
राजस्थान के अलग अलग पुलिस थानों में उन दलित-आदिवासी कार्यकर्ताओं की सूची तैयार की गई थी जो आंदोलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हों, ताकि पता चले कि किसे हिरासत में लिया जाये. कुल मिलाकर दलित और आदिवासी समुदाय को दबाने की कोशिश हुई थी. इसे दलितों की ताकत ही कहा जाएगा कि इस आंदोलन के बाद सत्तासीन सरकार को झुकना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगाया.

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