वो दलित समुदाय जिसके हाथ में पश्चिम बंगाल के सत्ता की चाबी

कोलकाता. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों (West Bengal Elections) में पहले चरण के मतदान शनिवार (27 मार्च) हो रहे हैं. पहले चरण के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों की निगाहें 10 और 17 अप्रैल को होने वाले चौथे और पांचवें चरण के मतदान (west bengal chunav 2021) पर है. ऐसा इसीलिए है क्योंकि इस चरण में पार्टियों के सामने उस दलित समुदाय को अपनी तरफ लुभाने की जद्दोजहद जिसके हाथों में सत्ता की चाबी है.

1.5 करोड़ से ज्यादा वोटर्स
हम यहां बात कर रहे हैं पश्चिम बंगाल में रहने वाले ‘मतुआ’ समाज (Matua Community) की. आंकड़ों के अनुसार पश्चिम बंगाल में करीब 3 करोड़ की आबादी वाले समुदाय के 1.5 करोड़ से अधिक वोटर्स हैं. मूल रूप से बांग्लादेशी यह समुदाय अनुसूचित जाति की श्रेणी में आता है.

40 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर पकड़
टाइम्स नाउ पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार राज्य के नदिया, उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिले में 40 से ज्‍यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की पकड़ है. इस बात को ऐसे भी समझा जा सकता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने बंगाल में चुनावी अभियान की शुरुआत बीणापाणि देवी से आशीर्वाद करके की थी.

 

बीणापाणि देवी को मतुआ समुदाय के लोगों काफी अहमियत देती है. इसी समुदाय के समर्थन के दम पर लोकसभा चुनावों में बीजेपी को जीत हासिल लगी थी.

वक्त के साथ बदला मतुआ समुदाय का रूख
हालांकि वक्त के साथ मतुआ समुदाय ने राजनीतिक पार्टियों पर जताए भरोसे को भी बदला है. किसी जमाने में तृणमूल कांग्रेस पर भरोसा दिखाने वाले मतुआ समुदाय ने 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को वोट दिया. हालांकि इन चुनावों में क्या होगा इसके बारे में कहा नहीं जा सकता है.

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पश्चिम बंगाल में कहां से आया मतुआ समुदाय?
साल 1947 में आजादी के साथ बंटवारे और एक अलग राष्‍ट्र के रूप में पाकिस्‍तान के उदय के बाद इस समुदाय के लोगों ने धार्मिक शोषण से तंग आकर 1950 के दशक में ही तब पूर्वी पाकिस्‍तान रहे इन इलाकों से भारत में पलायन शुरू कर दिया था. धीरे-धीरे यहां रहते हुए इस समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्‍या में यहां मतदाता पहचान-पत्र भी बनवा लिया और राज्‍य की राजनीति को गहरे प्रभावित करने लगे.

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