वक्त के साथ दलितों ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और 2010 में ये रिवाज बंद हुआ.
नई दिल्ली. होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं. गीले शिकवे भूल के दोस्तों दुश्मन भी गले मिल जाते हैं. जिस वक्त लेखक ने ये गाना लिखा था उस वक्त शायद उसके दिमाग में छुआछूत, जातिगत भेदभाव जैसी चीजें नहीं होंगी. भारत के अलग-अलग हिस्सों में रंगों का उत्सव होली कई अंदाज (Holi Celebrations 2021) में मनाया जाता है. हालांकि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड (Bundelkhand) में होली को लेकर सदियों से एक ऐसी परंपरा चली आ रही है, जिसने वहां रहने वाले दलितों का जीना दुश्वार कर दिया है.
होलिका दहन के बाद रात में गांवों के ‘लंबरदार’ अपने यहां ‘चौहाई’ (मजदूरी) करने वाले दलितों के साथ हुड़दंग के नाम जो करते थे वो वाकई चौंकाने वाला है. बताया जा रहा है होलिका दहन के बाद लंबरदार चुपके से दलितों के घरों में मरे मवेशियों की हड्डी, मल-मूत्र और गंदा पानी फेंका करते थे.
टोलियों में होता था होली का ‘हुड़दंग’
दरअसल, एक दशक पहले तक बुंदेलखंड में होलिका दहन के दिन गांव की सभी महिलाएं और पुरुष टोलियों में ढोलक, मजीरा और झांज के साथगीत गाते हुए जाते थे. होलिका के पास पहुंचते ही महिलाएं अरपने घर को लौट आती थी. ऐसा कहा जा सकता है कि होलिका एक महिला थी, महिला को जिंदा जलते कोई महिला नहीं देख सकती थी.
क्यों चली आ रही है ये परंपरा
– होलिका दहन के बाद हुड़दंग का खेल शुरू होता था. इस बहाने गांव में रहने वाले लंबरदार (काश्तकार) मरे मवेशियों की हड्डियां, मल-मूत्र और गंदा पानी अपने साथ लाकर अपने यहां चौहाई (मजदूरी) करने वाले दलित के दरवाजे और आंगन में फेंक देते थे.
– इसके बाद सुबह दलित परिवार के लोग उठते थे और लंबरदार को अपशब्द कहते थे. इसके बाद इस तरह के कचरे को टोकरियों में उठाया जाता था.
– देर शाम तक दलित मनचाही बख्शीस (इनाम) मिलने के बाद ही हुड़दंग का कचरा उठाकर गांव के बाहर फेंकने जाया करते थे.
– दलितों को बख्शीस के तौर पर काफी कुछ मिला भी करता था.
हालांकि वक्त के साथ दलितों ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और 2010 में ये रिवाज बंद हुआ. बुंदेलखंड में रहने वाले कुछ दलितों का कहना है कि होली का त्योहार भाईचारे का त्योहार है, प्रेम से रंग-गुलाल लगाया जा सकता है. किसी के दरवाजे मवेशियों का मल या मरे हुए जानवरों को फेंकना गलत है.
ये प्रथा नहीं बल्कि समाज के एक वर्ग का दोहन है. वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि वो इस रिवाज के खत्म होने से काफी खुश हैं, क्योंकि वो अब किसी भी हालत में दूसरों की गंदगी को ढोना या उठाना नहीं चाहते हैं.
मायावती का यह बयान दलित राजनीति (Dalit Politics) में 'नेतृत्व संघर्ष' के संकेत के रूप…
Akhilesh Yadav Dr. BR Ambedkar Poster Row : अखिलेश अपनी पार्टी के दलित नेताओं का…
Rohith Vemula Closure Report: कांग्रेस ने कहा कि जैसा कि तेलंगाना पुलिस ने स्पष्ट किया…
Kanshi Ram Thoughts on Elections and BJP : कांशी राम का मानना था कि चुनावों…
लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है. यह मुख्य रूप से संबद्ध जीवन, संयुक्त…
Ravidas Jayanti 2024 BSP Mayawati message : बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने शनिवार…
This website uses cookies.