कानून है, प्रशासन है फिर क्यों नहीं थम रहे दलितों के प्रति हिंसा के मामले?

नई दिल्ली. दलित महिला का दुष्कर्म, दलित युवक की पिटाई, एक समूह ने दलित को रास्ते में पकड़कर पीटा (Dalit oppression). आज का अखबार हो या फिर पुराने अखबार… रोजाना दलितों के साथ हो रहे अत्याचारों की खबरें हमें पढ़ने को मिलती हैं. कई बार ऐसी खबरें पढ़ते हुए हमें लगता है कि ये कोई नई बात नहीं है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) (एनसीआरबी) के आंकड़ें बताते हैं कि वक्त के साथ दलितों पर आत्याचार कम नहीं बल्कि ज्यादा हो रहे हैं. आधुनिक भारत की रफ्तार जितनी तेजी से बढ़ रही दलितों पर अत्याचारों भी बढ़ रहा है. भारत में हर 15 मिनट पर एक दलित के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है. आंकड़ें हमें बताते हैं दलितों पर हो रहे अत्याचारों 2018 में 42,793 मामले दर्ज हुए थे वहीं, 2019 में 45,935 मामले सामने आए.

इन राज्यों में दर्ज नहीं हुए मामले
जहां दलितों का उत्पीड़न यूपी, मध्यप्रदेश, राजस्थान में सबसे ज्यादा हुआ है, वहीं, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड और त्रिपुरा में एससी/एसटी अधिनियम में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है.

सब कुछ होते हुए भी जानकारी की कमी
जानकारों का कहना है कि भारत में होने वाली दलित हिंसा या उत्पीड़न के लिए सामाजिक और राजनीतिक कारण जिम्मेदार हो सकते हैं. बीबीसी से बातचीत के दौरान दलित चिंतक चंद्रभान प्रसाद का कहना है कि दलितों का उत्पीड़न कई वर्षों से समाज में हो रहा है, हालांकि पिछले 10 से 15 सालों में दलितों के खिलाफ होने वाली हिंसक घटनाओं में इजाफा हो रहा है. उनका मानना है कि दलितों में जानकारी की कमी है. वो अपने अधिकारों को पूरी तरह से नहीं जानते हैं, जिसके कारण उनके साथ ऐसे मामले बढ़ रहे हैं.

आज भी खाली हैं कई बड़े और अहम पद
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग में अध्यक्ष पद लंबे समय से खाली पड़े हैं. सरकार की ओर से इन पर कोई नियुक्ति नहीं की गई है. ये संस्थाएं अनुसूचित जाति और जनजातियों के ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचार पर नज़र रखती हैं. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोगों की वेबसाइट पर भी अध्यक्ष के अलावा कई अन्य पद वैकेंट (रिक्त) दिखाई देते हैं.

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क्या कहता है भारतीय कानून

– दलितों की सुरक्षा के लिए भारतीय कानून में अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 मौजूद है. यहां जानकारी के लिए बता दें कि एससी और एसटी वर्ग के सदस्यों के ख़िलाफ़ किए गए अपराधों का निपटारा इसी अधिनियम के तहत किया जाता है.

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– छूआछूत जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाने के लिए अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 बनाया गया. हालांकि बाद में इसमें बदलाव किया गया और इसे नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कर दिया गया. अगर कोई व्यक्ति छुआछूत को बढ़ावा देता है या ऐसा करता पाया जाता है तो इस अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाती है.

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