दलित रचना: चक्की में पिसते अन्न की तरह नहीं, उगते अंकुर की तरह जियो

सुशीला टाकभौरे (Sushila Takbhaure) दलित साहित्य (Dalit Sahitya) की महत्वपूर्ण कवयित्री, लेखिका एवं विचारक हैं…

स्वयं को पहचानो
चक्की में पिसते अन्न की तरह नहीं
उगते अंकुर की तरह जियो
धरती और आकाश सबका है
हवा प्रकाश किसके वश का है
फिर इन सब पर भी
क्यों नहीं अपना हक़ जताओ
सुविधाओं से समझौता करके
कभी न सर झुकाओ
अपना ही हक़ माँगो
नयी पहचान बनाओ
धरती पर पग रखने से पहले
अपनी धरती बनाओ।

-सुशीला टाकभौरे

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