मामला गुना जिले के बांसाहैड़ा गांव का है, जहां 45 वर्षीय दलित महिला (Dalit Woman) की मौत के बाद गांववालों को न सिर्फ चिता के लिए जरूरी चीजों, बल्कि टीन की चादरों से लेकर शेड तक का इंतजाम खुद करना पड़ा. (फोटो साभार : News18)
नई दिल्ली/गुना: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के गुना (Guna) से ऐसा शर्मनाक मामला सामने आया है, जोकि दलितों (Dalits) की दयनीय स्थिति को उजागर करता है. यहां दलितों को आजादी के 70 साल बाद भी एक अदद श्मशान घाट मुहैया नहीं हो पाया है. यहां मृतक के घरवालों को अंतिम संस्कार के लिए सारा इंतजाम खुद ही करना पड़ता ;है.
मामला Madhya Pradesh के गुना (Guna District) जिले के बांसाहैड़ा गांव का है, जहां 45 वर्षीय दलित महिला (Dalit Woman) की मौत के बाद गांववालों को न सिर्फ चिता के लिए जरूरी चीजों, बल्कि टीन की चादरों से लेकर शेड तक का इंतजाम खुद करना पड़ा. यहां तक की महिला के शव को टायर और डीजल से जलाना पड़ा.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बांसाहैड़ा गांव की रहने वाली रामकन्या बाई हरिजन का बीते शुक्रवार सुबह 10 बजे निधन हो गया था. इस दौरान बेहद तेज बारिश हो रही थी. इस कारण परिजनों को मृतका का पार्थिव शरीर कई घंटे तक घर में ही रखना पड़ा. जब बहुत देर तक बारिश बंद नहीं हुई तो उसके परिजन और गांववाले पार्थिव शरीर को लेकर उस जगह पहुंचे, जिस जगह अंतिम संस्कार किया जाता है.
यहां तक जाने के लिए भी कोई पक्की सड़क नहीं है. लोगों को कीचड़ भरे रास्ते से आना जाना पड़ता है. इसकी वजह से कई बार शव के अर्थी से गिरने तक का डर भी बना रहता है.
जब गांव वाले जब रामकन्या का शव लेकर यहां पहुंचे, तो यहां कोई टीन शेड या कोई चबूतरा मौजूद न होने के चलते लोगों ने गांव से 2 टीन की चादरें मंगवाईं. इसके बाद जैसे-तैसे चिता तैयार की गई. बारिश की वजह से लकड़ियां गीली हो चुकी थीं तो कुछ लकड़ियों के नीचे टायर रखकर जलाए गए. इसके बाद ही जाकर चिता ने आग पकड़ी.
इसके बाद शेड के रूप में 10-12 गांववाले खुद ही खड़े हो गए. उसके बाद महिला का डीजल डालकर अंतिम संस्कार किया जा सका. ग्रामीणों का कहना है कि आज तक उनके गांव में श्मशान घाट नहीं बना है. हर बार बारिश में उन्हें इसी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी शिकायत की गई है, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं हुई.
गौरतलब है कि इस दलित बहुल इलाके में दलित समुदाय (Dalit Community) के 1000 से अधिक परिवार रहते हैं. लोगों का कहना है कि बारिश में पंचायत की तरफ से भी कोई मदद मुहैया नहीं कराई गई. इसके चलते डीजल और टायरों से चिता को जलाया जाता है.
इस पर आजाद समाज पार्टी के मध्यप्रदेश अध्यक्ष कोमल अहिरवार ने दलित आवाज़ से बातचीत में कहा कि पूरे देश के 99%गांव में दलितों के शमशान के यही हालत है. देश के 95% गांव आज भी ऐसे हैं, जहां सवर्णों के शमशान घाट अलग हैं, जहां पार्थिव शरीर को जलाने की सम्पूर्ण व्यवस्था है, पर अछूतों के श्मशान आज भी अधूरे पड़े हैं. जहां कीचड़ भरे रास्तों से शवों को ले जाना पड़ता है. गीली जगह में सीमेन्ट की बोरी बिछाकर घी की जगह केरोसिन तेल के लिए उचित मूल्य की दुकानों में भीख मांगते हैं. चंदन की लकड़ी तो बहुत बड़ी बात टायर टयूब से शवों को जलते देखा है. मध्यप्रदेश शिवराज सरकार पूरे प्रदेश में और मोदी सरकार भारत के 100% गांवों में श्मशान घाट की व्यवस्था करे एवं दलित गरीबों को शवों के अंतिम संस्कार के लिए निशुल्क लकड़ियों का इंतजाम का कानून बनाना चाहिए. जिस दिन आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) सत्ता में आएगी, उस दिन सबसे पहले ये दोनों काम करेगी.
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