बाबा साहब के पास उस ज़माने में देश में क़िताबों का सबसे बेहतरीन संग्रह था.
बाबा साहब के पास उस ज़माने में देश में क़िताबों का सबसे बेहतरीन संग्रह था.
बाबा साहब का मानना था कि लगातार क़िताबें पढ़ते रहने से उन्हें ये अनुभव हो गया था कि किस तरह क़िताब के मूलमंत्र को आत्मसात कर उसकी फिजूल की चीजों को दरकिनार कर दिया जाए.
बाबा साहब का मानना था कि लगातार क़िताबें पढ़ते रहने से उन्हें ये अनुभव हो गया था कि किस तरह क़िताब के मूलमंत्र को आत्मसात कर उसकी फिजूल की चीजों को दरकिनार कर दिया जाए.
डॉ. आंबेडकर पर इन 3 क़िताबों का सबसे ज्यादा असर हुआ.
1. लाइफ ऑफ टॉलस्टाय
2. ले मिज़राब्ल
3. फार फ्रॉम द मैडिंग क्राउड
डॉ. आंबेडकर पर इन 3 क़िताबों का सबसे ज्यादा असर हुआ.1. लाइफ ऑफ टॉलस्टाय2. ले मिज़राब्ल3. फार फ्रॉम द मैडिंग क्राउड
लेखक जॉन गुंथेर ने लिखा है कि 1938 में जब राजगृह (बाबा साहब के घर) में डॉ. आंबेडकर से मेरी मुलाकात हुई तो उनके पास करीब 8000 किताबें थीं.
लेखक जॉन गुंथेर ने लिखा है कि 1938 में जब राजगृह (बाबा साहब के घर) में डॉ. आंबेडकर से मेरी मुलाकात हुई तो उनके पास करीब 8000 किताबें थीं.
लेखक जॉन गुंथेर ने आगे लिखा कि डॉ. साहब की मृत्यु के दिन तक ये संख्या बढ़कर 35,000 तक हो चुकी थी..
लेखक जॉन गुंथेर ने आगे लिखा कि डॉ. साहब की मृत्यु के दिन तक ये संख्या बढ़कर 35,000 तक हो चुकी थी..
बाबा साहब अपनी क़िताबें किसी को भी पढ़ने के लिए उधार नहीं देते थे.
बाबा साहब अपनी क़िताबें किसी को भी पढ़ने के लिए उधार नहीं देते थे.
बाबा साहब कहा करते थे कि अगर किसी को उनकी किताबें पढ़नी हैं तो उसे उनके पुस्तकालय में आकर पढ़ना चाहिए.
बाबा साहब कहा करते थे कि अगर किसी को उनकी किताबें पढ़नी हैं तो उसे उनके पुस्तकालय में आकर पढ़ना चाहिए.