शहीद उधम सिंह, जिन्होंने जनरल माइकल ओ डायर की हत्या की थी...
नई दिल्ली : जघन्य जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) की प्रतिक्रिया में शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Bhagat Singh) से प्रेरणा ग्रहण कर लंदन जाकर जनरल माइकल ओ डायर (General Michael O’Dwyer) को मारने वाले अमर सपूत शहीद उधम सिंह कंबोज (Sardar Udham Singh ) को साल 1940 में 31 जुलाई को इंग्लैंड में फांसी दी गई. आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ खास तथ्य…
26 दिसंबर, 1899 को माता नारायणा कौर की कोख से क्रांतिकारी बालक उधम सिंह का जन्म हुआ. 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी और रोल्ट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई थी. इसमें हजारों लोग मौजूद थे. सरदार उधम सिंह यहां सबको पानी पिलाने का काम कर रहे थे.
इस सभा से पंजाब का गवर्नर माइकल ओ डायर गुस्साया हुआ था. उसने अपने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को चारों तरफ से घेर लिया. यहां उसने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दीं, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए.
शहीद सरदार उधम सिंह कंबोज (Sardar Udham Singh) ने इस जनसंहार को अपनी आंखों से देखा और उसी वक्त इसका बदला लेने की ठान ली. उधम सिंह, भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियों से बहुत ज्यादा प्रभावित थे. वह भगत सिंह को अपना करीबी दोस्त मानते थे. भगत सिंह को फांसी दिए जाने के बाद वह अक्सर यही कहते थे कि मेरा दोस्त मुझे छोड़कर चला गया है. मुझे जल्दी जाकर उससे मिलना है.
21 साल की उम्र में उन्होंने 13 मार्च, 1940 को जलियांवाला बाग नरसंहार (Jallianwala Bagh Massacre) के जिम्मेदार जनरल माइकल ओ डायर को कैक्सटन हाल में गोली मार दी थी. इसमें डायर और उसके दो अंगरंक्षकों की मृत्यु हुई थी. इसे अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा था और उसमें वहां खरीदी रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर प्रवेश कर गए थे.
इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत पूरी तरह हिल गई. लंदन की कोर्ट में मामले के ट्रायल के दौरान उधम सिंह ने जज एटकिंग्सन के सामने जिरह करते हुए कहा था- ‘मैंने भारत में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बच्चों को कुपोषण से मरते देखा है. जलियांवाला बाग जैसा नरसंहार (General Michael O’Dwyer) भी अपनी आंखों से देखा है. लिहाजा मुझे कोई दुख नहीं है. चाहे मुझे 10-20 साल की सजा दी जाए या फांसी पर लटका दिया जाए. मेरी प्रतिज्ञा अब पूरी हो चुकी है. अब मैं अपने वतन के लिए शहीद होने को तैयार हूं.’
अदालत में उनसे यह भी पूछा गया कि घटनास्थल पर डायर के अन्य साथी भी मौजूद थे, वह उनको भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? इसके जवाब में उधम सिंह ने कहा था कि वहां पर कई महिलाएं मौजूद थीं और वो महिलाओं पर हमला नहीं करते. बताया जाता है उनकी इस बात को सुन जज भी अचंभित रह गए.
जज ने उधम सिंह को फांसी की सजा सुनाई. फांसी की सजा सुनने के बाद क्रान्तिवीर उधम सिंह ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगाते हुए अपने मुल्क भारत के लिए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की अपनी मंशा जता दी और 31 जुलाई 1940 को वीर उधम सिंह को ब्रिटेन की ‘पेंटनवीले जेल’ में फांसी दे दी गई. देश के बाहर फांसी की सजा पाने वाले उधम सिंह दूसरे क्रांतिकारी थे. सरदार उधम सिंह के परपोते हरदयाल सिंह कंबोज कहते हैं कि हमें अपने दादा सरदार उधम सिंह ‘कंबोज’ जी पर नाज हैं. उनका बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा.
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