1950 में कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में छपे आंबेडकर के इस लेख आंबेडकर ने कहा था समस्य दुनिया में चार धर्म प्रचलित हैं.
बचपन से छूआछूत, समाज में बहिष्कार जैसे कुरीतियों का शिकार रहे डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) ने आखिरकार हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म (Buddhism) ही क्यों अपनाया? आंबेडकर ने इस्लाम, ईसाई या फिर सिख धर्म (Islam, Christianity, Sikhism) को क्यों नहीं चुना. ऐसे ही कई सवाल हैं जो आज भी सब पूछते हैं.
डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म (Buddhism) को ही क्यों चुना इसका जवाब ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ में मिलता है. डॉ. आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) के इस लेख में उन्होंने बताया है कि बौद्ध धर्म उनकी नजरों में सबसे ऊपर था. उन्होंने ये बात इसीलिए कही क्यों आंबेडकर को लगता है कि बौद्ध धर्म सभी जाति के लिए कल्याणकारी है.
दुनियाभर में 4 धर्म हैं प्रचलित
1950 में कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में छपे इस लेख में आंबेडकर ने कहा था समस्य दुनिया में चार धर्म प्रचलित हैं. इन चार धर्म प्रवर्तकों के बीच एक और भेद भी है. ईसा और मुहम्मद दोनों ने दावा किया कि उनकी शिक्षा ईश्वर या अल्लाह की वाणी है और ईश्वर वाणी होने के कारण इसमें कोई त्रुटि नहीं हो सकती है.
कृष्ण अपनी स्वयं की ही धारण की हुई उपाधि के अनुसार विराट रूप परमेश्वर थे और उनकी शिक्षा चूंकि परमेश्वर के मुंह से निकली हुई ईश्वर वाणी थी, इसलिए इसमें किसी प्रकार की कोई गलती होने का सवाल उठना ही नामुमकिन है.’
बुद्ध ने नहीं किया अंतिम सत्य होने का दावा
सभी धर्मों से बौद्ध की तुलना करते हुए आंबेडकर ने अपने लेख में कहा था कि गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षा और धर्म में किसी भी तरह के अंतिम सत्य होने का दावा नहीं किया है. बुद्ध ने सदैव इस बात का उल्लेख किया है कि उनका धर्म तर्क और अनुभव पर आधारित है. बुद्ध ने यह भी कहा है कि उनके अनुयायियों को उनकी शिक्षा को केवल इसीलिए सही और जरूरी नहीं मान लेना चाहिए कि यह उनकी (बुद्ध की) दी हुई है.
अपने अनुयायी को छूट देते हुए बुद्ध ने कहा कि अगर किसी भी विशेष स्थिति में कोई सटीक बात मालूम होती है तो पुरानी चीजों को छोड़कर नई चीजों को स्वीकार किया जा सकता है.
आंबेडकर ने बौद्ध धर्म के बारे में क्या-क्या कहा
– आंबेडकर ने लिखा कि यह सच है कि बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी. न केवल पुरुष और पुरुष के बीच समानता, बल्कि पुरुष और स्त्री के बीच समानता की भी.
– आंबेडकर लिखते थे कि हिंदू धर्म का असल सिद्धान्त असमानता है. चातुर्वण्य का सिद्धान्त इस असमानता के सिद्धान्त का ठोस और जीता-जागता साकार रूप है.
– बुद्ध चातुर्वण्य के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने न केवल इसके विरुद्ध प्रचार किया और इसके विरुद्ध लड़ाई लड़ी. बुद्ध ने इसे खत्म करने के लिए लगातार प्रयास किए और सफल भी रहे.
हिंदू धर्म छोड़ने से पहले कई सालों का तक रिसर्च
इतिहास इस बात का गवाह है कि आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1936 में की थी, लेकिन उन्होंने बौद्ध धर्म का 1956 में अपनाया था. इस दौरान उन्होंने सभी धर्मों पर पूरी रिसर्च की और श्रेष्ठ धर्म को चुनने के बाद बौद्ध को चुना.
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