दलित साहित्य (Dalit literature) की 5 आत्मकथाएं, जो हर किसी को पढ़नी चाहिए

लेखक- बलविंदर कौर नन्‍दनी

आधुनिक दलित साहित्य (Dalit Sahitya) का आगाज महाराष्ट्र (Maharashtra) में 60 के दशक में ‘दलित पैंथर आंदोलन’ (Dalit Panther Movement) के बाद हुआ. इस आंदोलन के चलते ज.वि.पवार, राजा ढाले, नामदेव ढसाल, अरुण कांबले जैसे दलित एक्टिविस्ट (Dalit Activist) और रचनाकारों ने दलित साहित्य (c) लिखने वालों में नई जान फूंकी, क्योंकि इससे पहले दलित साहित्य को छापने का कोई रिवाज ही नहीं था. रद्दी साहित्य समझकर दलित साहित्य की अनदेखी की जाती थी. दलितों के बारे में लिखने वाले गैर दलित लेखक ही हुआ करते थे. इस आंदोलन द्वारा साहित्य की मुख्यधारा से जुड़ने के लिए दलित रचनाकारों को एक ऐसा प्लेटफॉर्म प्राप्त हुआ, जिसने देश भर के दलितों को आकर्षित किया.

दलित साहित्यकारों ने कविता, कहानी, नाटक, आत्मकथा आदि साहित्यिक विधाओं के लेखन में एक बड़ा रोल निभाया. दलितों की तकलीफों, उनकी वेदनाओं और जीवन की परेशानियों को इन आत्मकथाओं ने दुनिया के सामने खोल के रख दिया, जिनसे लोग इससे पहले कम वाकिफ़ थे. आइये जानते हैं ऐसी ही कुछ दलित आत्मकथाओं के बारे में जिन्होंने साहित्य के क्षेत्र में खूब सुर्खियां बटोरी. अलग-अलग भाषाओं में लिखी गई इन आत्मकथाओं में  एक ही दर्द छिपा है.

जूठन –ओमप्रकाश वाल्मीकि (Om Prakash Valmiki)
‘जूठन’ समाज के हाशिए पर डाल दिए गए ऐसे लोगों की बात करती है जिन्हें सदियों से एक जातीय पहचान के चलते नर्क भरा जीवन जीने के लिए छोड़ दिया गया है. वो लोग जो दो वक्त का भोजन भी अमीरों की जूठी फेंकी गयी पत्तलों में से चुनते है. ऐसे अस्वस्थ वातावरण में अपना पूरा जीवन बिता देते हैं जहां साँस लेना भी दूभर हो जाता है. आज के डिजिटल जीवन की दौड़ में यह यकीन कर पाना उतना ही मुश्किल है जितना इसको अपने जीवन में सहन कर पाना.

ओमप्रकाश वाल्‍मीकि की वह 2 कविताएं जो ‘दलितों की कहानी’ सबको चिल्‍लाकर बताती हैं… पढ़ें

अक्करमाशी – शरण कुमार लिंबाले
समाज में असमान्य संबंधों से पैदा हुई संतान को मराठी में अक्करमाशी कहा जाता है. अछूत समझे जाने वाले समाज में स्त्री यूं भी दोहरा दंड भोगती आई है. एक उसका औरत होना, दूसरा उसकी दलित पहचान. दलित माँ और उसकी संतान का संघर्ष उनके दलित जीवन को किन कठनाइयों से भरता है. उस तकलीफ को समझने के लिए यह आत्मकथा पढ़ी जानी जरूरी है.

यह भी पढ़ें – दलित मुक्ति के सवालों की तलाश और अंतरजातीय विवाह

Advertisements

दोहरा अभिशाप – कौशल्या वैसन्त्री
यह जीवनी दलित औरत के दोहरे अभिशाप की गाथा कहती है. यह आत्मकथा दलित जीवन की मुश्किलों को किसी औरत के नजरिए से देखे जाने का पहला अनुभव था. अपनी नानी के जीवन से बात शुरू कर लेखिका दलित समाज की जातियों और प्रथाओं का अविस्मरणीय नक्शा खींचती हैं. वास्तव में ये दलित महिला लेखन की बेहतरीन रचना है.

दास्तान – लाल सिंह दिल
दलित आत्मकथा साहित्य की चर्चा पंजाब के लाल सिंह दिल के बिना अधूरी जान पड़ती है. यूं तो दिल कवि के रूप में अधिक लोकप्रिय है लेकिन उनकी आत्मकथा एक गरीब व्यक्ति के दलित जीवन और उसकी वैचारिक, समाजिक यात्रा का जीवंत वृतांत है. लेखक के जीवन की विभिन्न परतें सोए हुए पाठकों के रोगटें खड़े कर सकती है.

यह भी पढ़ें – शाहूजी महाराज: दलितों के मसीहा और महान समाज सुधारक, जिन्‍होंने 1902 में आरक्षण लागू किया

बलबीर माधोपुरी- छाग्या रुक्ख
‘छाग्या रुक्ख’ दलित जीवन पर लिखी आत्मकथाओं में एक महत्वपूर्ण रचना बनके उभरी है. इस आत्मकथा का हिंदी सहित कई भाषाओँ में अनुवाद हो चुका है. छाग्या रुक्ख में लेखक ने पंजाब के गांव के दलित जीवन की तस्वीर पेश की है जिसमें भेदभाव, छुआछूत और अमीर-गरीब के सारे दृश्य मौजूद है.

dalitawaaz

Dalit Awaaz is the Voice against Atrocities on Dalit & Underprivileged | Committed to bring justice to them | Email: dalitawaaz86@gmail.com | Contact: 8376890188

Recent Posts

Mayawati की BSP महारैली – क्या इशारों में चंद्रशेखर आजाद पर वाकई निशाना साधा गया?

मायावती का यह बयान दलित राजनीति (Dalit Politics) में 'नेतृत्व संघर्ष' के संकेत के रूप…

9 hours ago

Dr. BR Ambedkar on Ideal Society : एक आदर्श समाज कैसा होना चाहिए? डॉ. बीआर आंबेडकर के नजरिये से समझिये

लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है. यह मुख्य रूप से संबद्ध जीवन, संयुक्त…

2 years ago

This website uses cookies.