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शूरवीर तिलका मांझी,  जो 'जबरा पहाड़िया'  पुकारे गए. पहाड़िया में 'तिलका' का मतलब है, ऐसा व्यक्ति जो ग़ुस्सैल हो और जिसकी आंखें लाल-लाल हों. 

तिलका मांझी की वीरता रोंगटे खड़े करती है, लेकिन इतिहास की किताबों में उन्हें कभी जगह नहीं मिली

तिलका मांझी ने अंग्रेजों की नाक में दम तो किया ही, अंग्रेजों के चापलूस सामंतों पर भी आक्रमण किए. 

तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में ‘तिलकपुर’ नामक गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था और इनका वास्तविक नाम ‘जबरा पहाड़िया’ हुआ करता था, लेकिन लोगों ने इनकी गुस्सैल प्रवृत्ति और कार्यों को देखते हुए इन्हें तिलका मांझी नाम दे दिया.

तिलका मांझी ने शुरुआत से ही अपने जंगलों के संसाधनों को अंग्रेजों द्वारा लुटते हुए देखा और धीरे-धीरे इसके खिलाफ उन्होंने आवाज उठाना शुरू कर दिया.

28 वर्षीय तिलका मांझी के नेतृत्व में आदिवासियों ने 1778 में रामगढ़ कैंटोनमेंट में तैनात पंजाब रेजिमेंट पर हमला कर दिया. 

आदिवासियों की सेना इतने जोश के सामने कंपनी सरकार की बंदूकें नहीं चल पाईं. अंग्रेज़ों को कैन्टोनमेंट छोड़ कर भागना पड़ा.

मांझी ने 13 जनवरी को ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज़ी कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया और मार गिराया.

कहा जाता है कि किसी भेदी ने तिलका का पता अंग्रेज़ों को बता दिया. अंग्रेज़ों ने घोड़ों से बांधकर भागलपुर तक घसीटा. 13 जनवरी, 1785 को वीर को फांसी दे दी गई.