दलित उत्‍पीड़न

मिर्चपुर कांड में एक दलित एक्टिविस्‍ट/वकील की आपबीती: ‘जज के सामने मुझे पुलिस अफसरों ने धमकाया, जान से मारने को भीड़ भागी’

हरियाणा (Haryana) के चर्चित मिर्चपुर (Mirchpur) के दलित बस्ती में आगजनी व हत्याकांड के मुकदमे की सुनवाई हिसार से दिल्ली ट्रांसफर हो चुकी थी तथा मुकदमे की सुनवाई दिल्ली की रोहिणी स्थित अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम (Sc/ST Act) के तहत स्थापित विशेष अदालत की जज कामिनी लॉ (Judge Kamini Lau) की अदालत में चल रही थी.

सुनवाई के दौरान जज कामिनी लाऊ ने हमें बताया कि वह मिर्चपुर में घटनास्थल का दौरा करना चाहती हैं, जहां दलितों (Dalits) की पूरी बस्‍ती जलाकर तहस-नहस कर दी गई, जिसमें दो लोगों की जान तक चली गई थी. जज ने इस विजि़ट को लेकर इस बारे में आदेश पारित कर दिया.

इसके बाद तय दिन को हम दिल्ली से न्यायाधीश कामिनी लाउ के साथ घटनास्थल के दौरे के लिए चल पड़े. इस दौरान 103 आरोपियों के 20-25 वकील भी मिर्चपुर गांव पहुंच गए थे.

हांसी रेस्ट हाउस में जज कामिनी लाऊ ने मुझसे कहा कि ‘आप मेरे साथ रहें. मुझे वारदात की जगह तथा जले हुए घर दिखाएं’. हम हांसी से जब मिर्चपुर के लिए चले तो हमारे साथ पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस अधीक्षक तथा हिसार जिले के सभी डीएसपी, सभी पुलिस इंस्पेक्टर व 4 बसों में सैकड़ों पुलिसवाले हमारे साथ थे.

जब हम मिर्चपुर पहुंचे तो हमें गांव में पुलिस अधिकारियों के साथ आरोपियों की जाति से बनी एक शांति कमेटी मिली, जिसका काम केवल किसी भी कीमत पर समझौता कराना और गवाह तोड़ना था. हालांकि जज साहब ने उनकी बातों पर ना ध्यान देकर पुलिस प्रशासन तथा मुझे कहा कि जल्दी से मौके का दौरा कराया जाए.

जब मैंने जज को मौके का दौरा करना शुरू किया व जले हुए घर दिखाने शुरू किए तो उस समय हमारे साथ सैकड़ों पुलिसकर्मी मौजूद थे और शांति कमेटी के लोग हमारे साथ साथ चल रहे थे.

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Mirchpur Kandमिर्चपुर कांड के पीड़ित वर्षो बाद भी सिस्टम की उपेक्षा का शिकार हैं. गांव छोड़कर आए परिवार टेंट में रहने को मजबूर हैं. (फोटो साभार : दैनिक जागरण)

मेरे द्वारा जले हुए घर व आगजनी की जगह दिखाने पर शांति कमेटी ने एतराज करना शुरू कर दिया तथा कहा कि यह वकील गांव का भाईचारा बिगाड़ रहा है तथा गांव की शांति भंग कर रहा है.

एक सीनियर पुलिस अधिकारी सबके सामने ही मुझे धमकाने लगा तो मैंने भी उसे सामने से धमकाया तथा चुप रहने को कहते हुए कहा कि ‘मैं अपना काम कर रहा हूं. मुझे अपने काम करने दो तथा यह अदालत की कार्रवाई है. इसमें आप इंटरफेयर ना करें’.

इसके बाद वहां पर मौजूद पुलिस के एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने जज के सामने ही मुझे सीने पर हाथ से धक्के मारने शुरू कर दिए और कहा कि तेरे को तेरे से अच्छी तरह निपटा जाएगा और यहां पर कोई भी घटना हुई तो तू खुद जिम्मेदार होगा.

इसके बाद पुलिस प्रशासन द्वारा जान-बूझकर अफवाह फैला दी गई कि गांव में दंगा होने वाला है तथा जज साहिब को भी इस बात से अवगत करा दिया गया तथा जज को गुमराह करके व दंगे का डर दिखाकर वहां से मिनटों के अंदर ले जाया गया.

केवल एक से दो मिनट के अंदर यह नजारा था कि सारा पुलिस प्रशासन, जज साहिबा और प्रशासनिक अधिकारी वहां से जा चुके थे तथा वहां पर केवल भागते हुए वाहनों से उड़ती हुई धूल नजर आ रही थी.

केवल मैं और मेरा साथी अधिवक्ता श्रीजी भावसार वहां पर अकेले खड़े नजर आए. गांव की शांति कमेटी तथा आरोपियों के परिवार के सैकड़ों लोग हमारी तरफ गुस्से भरी नजरों से देख रहे थे.

वे लोग मुझे देखकर कहने लगे कि यही विघ्न की जड़ है. इसे पकड़ो. ये कहकर वे हमारे पीछे भागे और आप सोचिए कि हम दो लोग आगे-आगे भाग रहे थे तथा सैकड़ों लोग हमारे पीछे भाग रहे थे.

तभी हांसी के एसडीम की गाड़ी भी वहां से निकली तथा उसमें बैठे एसडीएम ने मुझे पहचान लिया तथा गाड़ी रोककर फटाफट मुझे भागकर आने को कहा. मैं तथा मेरा साथी वकील फिल्मी स्टाइल में भागकर चलती गाड़ी में चढ़े और भीड़ से हमारी जान बची. हमने एसडीएम साहब का हमारी जान बचाने के लिए धन्यवाद किया.

आज भी जब वह घटना याद आती है तो सोचते हैं कि अगर उस समय एसडीएम हांसी मौके नहीं पहुंचते तो हमारी जान बचनी मुश्किल थी. हमारी वहीं पर मोब लिंचिंग हो जाती और हमारा कसूर केवल इतना था कि हम दलित समाज के पीड़ितों की लड़ाई लड़ रहे थे.

(यह घटना दलित एक्टिविस्‍ट एवं एडवोकेट रजत कलसन के साथ घटित हुई. वह मिर्चपुर दलित उत्‍पीड़न केस में पीडि़तों की तरफ से वकील रहे. निचली अदालत से लेकर उच्‍च अदालत तक उन्‍होंने सक्रिय रूप से इस मामले की पैरवी की.)

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Dalit Awaaz is the Voice against Atrocities on Dalit & Underprivileged | Committed to bring justice to them | Email: dalitawaaz86@gmail.com | Contact: 8376890188

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