आपने ग्रेजुएशन की, पीएचडी की और विश्व के बहुत बड़े शहर के बहुत बड़े घर में रह रहे हैं. पैसा है, शोहरत है, परिवार है सब कुछ बड़ा है. लेकिन जब बात सोच की आती है तो वो जमीनी स्तर से नीचे गिरी हुई है. ये कहानी सिर्फ भारत नहीं बल्कि विश्व के कई विकसित देशों की है. आप अपना देश छोड़कर अच्छी पढ़ाई कर लेंगे, लेकिन जाति के प्रति जो पुरानी सोच है वो सात समंदर पार तक आपका पीछा नहीं छोड़ सकती. पिछले दिनों ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford university) के लिनाक्रे कॉलेज में पढ़ाई कर रहीं भारतीय मूल की रश्मि सामंत ने जातिसूचक कमेंट्स के कारण छात्र संघ के अध्यक्ष पद से अपना नाम वापस ले लिया था.
पिछले कई सालों में ऐसे अनगिनत मामले आए हैं, जब बड़े संस्थानों में जातिगत भेदभाव देखने को मिले हैं. रश्मि सामंत की तरह की अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में एक कंपनी के दो अधिकारियों पर अपने से छोटे पद पर काम कर रहे कर्मचारी के साथ जाति (Dalit in America) के आधार पर भेदभाव का आरोप लगा. जब कर्मचारी द्वारा यह मुद्दा उठाया गया और ऑफिस प्रशासन सकते में आया और कार्रवाई शुरू की. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि पीड़ित दलित वर्ग से आता है.
अमेरिका में क्या है दलितों के हालात?
सबसे पहले बात करते हैं विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका की. अमेरिका में रहने वाले भारतीय दलितों के वहां पर क्या हालात हैं इसको जानने के लिए साल 2018 में अमेरिकी स्टार्टअप इक्विटी लैब्स ने सर्वे किया था. इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले ज्यादातर दलित भारतीयों का कहना था कि जातिगत आधार पर उनके साथ कई बार मारपीट और मौखिक तौर पर हिंसा हुई. दलित वर्ग के लोगों ने कहा कि जाति के आधार पर उनके साथ ऑफिस में भी गलत होता है, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है.
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3 में से एक दलित छात्र पढ़ाई के दौरान भेदभाव का शिकार
इतना ही नहीं विदेशों में पढ़ाई करने वाले छात्रों का यही हाल है. सर्वे की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि हर तीन में से एक दलित छात्र ने पढ़ाई के दौरान भेदभाव का शिकार होता है. 60 फीसदी दलितों ने कहा कि जाति के आधार पर टिप्पणियों या घटिया मज़ाक का उन्होंने सामना किया है.
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40 प्रतिशत दलितों और 14 प्रतिशत शूद्र प्रतिभागियों ने कहा कि मंदिरों में जाने में वे असहज महसूस करते हैं. 40 प्रतिशत से अधिक का कहना था कि जाति के कारण उन्हें रोमांटिक पार्टनरशिप में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
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