दलित इतिहास

Today’s Dalit History (23 फरवरी): संत गाडगे महाराज, जो जाति व्यवस्था-अस्पृश्यता के घोर विरोधी थे

लेखक एवं बहुजन विचारक दयानंंद कांबले सूचना एवं जनसंपर्क महानिदेशालय, महाराष्ट्र सरकार में उप निदेशक (समाचार) के पद पर कार्यरत हैं.

Today’s Dalit History (23rd February) | आज का दलित इतिहास (23 फरवरी) : महान समाज सुधारक और लोक शिक्षक संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) की आज जयंती पर उन्‍हें नमन. उन्होंने जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता (Caste System & Untouchability) को अधार्मिक और घृणित माना. गाडगे बाबा (Gadge Baba) का मानना था कि ये धार्मिक परंपरा में ब्राह्मणवादी तत्वों के प्रक्षेप थे और उनका उद्देश्य अपने हितों की सेवा करना था. उनका कहना था कि ब्राह्मणवादियों ने आम आदमी का शोषण किया और इन दोषपूर्ण अवधारणाओं की मदद से अपना जीवनयापन किया.

गाडगे बाबा लोगों से अंधविश्वास और धार्मिक अंधविश्वासों से दूर रहने का आग्रह करते थे. संत गाडगे महाराज हमेशा कहते थे, “देवताओं की मूर्तियों पर सुगंधित फूल चढ़ाने के बजाय अपने आसपास के लोगों की सेवा के लिए अपना रक्त अर्पित करें. अगर आप किसी भूखे को खाना खिलाएंगे, तो आपका जीवन सार्थक हो जाएगा. मेरी झाड़ू भी उन फूलों से बेहतर है.”

संत गाडगे महाराज (Sant Gadge Maharaj) अपने आप में एक संस्था थे. वे न केवल एक महान संत थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे. बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर (Baba Saheb Dr. Bhimrao Ambedkar) ने गाडगे बाबा (Gadge Baba) को महात्मा ज्योतिराव फुले (Mahatma Jyotirao Phule) के बाद लोगों का सबसे बड़ा सेवक बताया था.

दरअसल, गाडगे बाबा का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगांव अंजनगांव (Shendgaon Anjangaon in Amravati district of Maharashtra) में हुआ था. उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने में कई धर्मशालाएं, गौशालाएं, विद्यालय, चिकित्सालय तथा छात्रावासों को बनवाया. और यह सब उन्‍होंने भिक्षा मांगकर किया, पर अपने लिए जीवन भर एक कुटिया भी नहीं बनवाई. वह मानते कि अंधविश्वासों, बाह्य आडंबरों, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों एवं दुर्व्यसनों से समाज को भयंकर हानि हो सकती है, क्‍योंकि इसका उन्‍हें जीवन में भलीभांति अनुभव हुआ. इसी कारण उन्‍होंने इसका घोर विरोध किया.

उनके जीवन का उद्देश्‍य केवल लोकसेवा, दीन-दुखियों तथा उपेक्षितों की सेवा करना ही था. धार्मिक आडंबरों का वह प्रखर विरोध किया करते. वे हमेशा कहा करते थे कि तीर्थों में पंडे, पुजारी सब भ्रष्टाचारी रहते हैं. पंडों के चरण छूने की प्रथा, जो आज भी प्रचलित है, संत गाडगे इसके प्रबल विरोधी थे. धर्म के नाम पर होने वाली पशुबलि के भी वे विरोधी थे. यही नहीं, नशाखोरी, छुआछूत (Untouchability) जैसी सामाजिक बुराइयों तथा मजदूरों व किसानों के शोषण (Exploitation of Laborers and Farmers) के भी वह खिलाफ थे.

 

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