दलित न्‍यूज़

‘बहुजन नायक’ कांशीराम, जो लोगों को इकट्ठा करते हुए दलित राजनीति का चेहरा बन गए…

जब-जब भारत की राजनीति में दलितों की बड़ी भूमिका के साथ बहुजनों में सामाजिक चेतना जगाने की बात होती है, तो मान्‍यवर कांशीराम (Kanshi Ram) का नाम सहज ही जुबां पर आता है. बहुजन समाज के प्रति उनके द्वारा किए गए जन आंदोलनों से नए भारत के निर्माण हुआ है. पंजाब के रोपड़ जिले में जन्मे कांशीराम को डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) के बाद दलित आंदोलन का दूसरा सबसे बड़ा नाम माना जाना जाता है.

साइकिल रैली का आयोजन कर अपनी ताकत दिखाई
बहुजन नायक या साहेब के नाम से मशहूर, कांशीराम ने साल 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति या डीएस4 की स्थापना की. 1982 में उन्होंने ‘द चमचा एज’ लिखी, जिसमें उन्होंने उन दलित नेताओं की आलोचना की जो कांग्रेस जैसी परंपरागत मुख्यधारा की पार्टी के लिए काम करते है. 1983 में डीएस4 ने एक साइकिल रैली का आयोजन कर अपनी ताकत दिखाई. इस रैली में तीन लाख लोगों ने हिस्सा लिया था.

‘आंबेडकर किताबें इकट्ठा करते थे, लेकिन मैं लोगों को इकट्ठा करता हूं’
साल 1984 में उन्होंने राजनीतिक दल बीएसपी की स्थापना की. कांशीराम तब तक पूरी तरह से एक पूर्णकालिक राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता बन गए थे. उनका कहना था, आंबेडकर किताबें इकट्ठा करते थे, लेकिन मैं लोगों को इकट्ठा करता हूं. उन्होंने तब मौजूदा पार्टियों में दलितों की जगह की पड़ताल की और बाद में अपनी अलग पार्टी खड़ा करने की जरूरत महसूस की. वो एक चिंतक भी थे और ज़मीनी कार्यकर्ता भी.

‘अपने हक़ के लिए लड़ना होगा, गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी’
बहुत कम समय में बीएसपी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी एक अलग छाप छोड़ी. उत्तर भारत की राजनीति में गैर-ब्राह्मणवाद की शब्दावली बीएसपी ही प्रचलन में लाई हालांकि मंडल दौर की पार्टियां भी सवर्ण जातियों के वर्चस्व के ख़िलाफ़ थीं. दक्षिण भारत में यह पहले से ही शुरू हो चुका था. कांशीराम का मानना था कि अपने हक़ के लिए लड़ना होगा, उसके लिए गिड़गिड़ाने से बात नहीं बनेगी.

ऐसे दलित आंदोलन हुआ खड़ा
बहुजन समाज पार्टी ने आगे चलकर चार बार भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई. साथ ही कई बार केंद्र की सरकारों में अहम भूमिका निभाई. जातिगत भेदभाव से कांशीराम का सामना पहली बार पुणे में अपनी नौकरी के दौरान हुआ. बताया जाता है कि बाबा साहेब आंबेडकर जयंती और बुद्ध जयंती की छुट्टियों को रद्द कर दिया था. ये इन दो छुट्टियों को बहाल करने का संघर्ष ही था, जिसने कांशीराम को दलित समुदाय के हितों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया.

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आंबेडकर के लेखन, खासकर ‘The Annihilation of Caste’ ने कांशीराम के अंदर अपनी पहचान को लेकर गर्व और दलितों को एक साथ लाने की इच्छा पैदा की. उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के लिए 8 सालों तक काम किया, लेकिन फिर पार्टी के काम करने के तरीके से उनका मोहभंग हो गया.

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