पश्चिम बंगाल में दीदी ने ऐसे बैलेंस किया धर्म और जाति का समीकरण

Mamta banerjee

नई दिल्ली/कोलकाता. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों (West Bengal Assembly Elections 2021) का बिगुल बजते ही पूरे देश की राजनीति गर्मा गई है. हर किसी का ध्यान सिर्फ इस बात का टिका हुआ है कि आखिरकार इस बार ममता दीदी के खाते में जीत का रसगुल्ला आएगा या फिर बीजेपी बाजी मारेगी. सियासी रण में दोनों ही पार्टियों ने अपने सभी सिपहसालारों के नाम का ऐलान कर दिया है.

बंगाल की 294 सीटों में से टीएमसी 291 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि तीन सीटें उसने सहयोगी गोरखा मुक्ति मोर्चा के लिए छोड़ दी है. बीजेपी के खिलाफ रणनीति और सियासी समीकरण को सांधने के लिए ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) ने दलित, अनुसूचित जाति और महिला उम्मीदवारों का ऐसा फॉर्मूल बैठाया है, जिसका जवाब कम ही रणनीतिकारों के पास है.

बंगाल में 30फीसदी है SC/ST आबादी
ममता बनर्जी बंगाल में दलित और अनुसूचित जनजाति को भी साधने की कवायद की है और यही वजह है कि टीएमसी ने 79 दलित उम्मीदवारों जबकि 17 अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों को टिकट दिया गया है. बंगाल में एससी और एसटी समुदाय की आबादी भी करीब 30 फीसदी है, जो राजनीतिक लिहाज से काफी अहम मानी जाती है. ऐसे में ममता ने इन दोनों समुदाय को बड़ी तादाद में उतारकर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की रणनीति अपनाई है.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में दलितों की अहम भूमिका
पश्चिम बंगाल की राजनीति में दलित समुदाय की अहम भूमिका है. 2011 की जनगणना के अनुसार, बंगाल में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या करीब 53 लाख है. ये राज्य की कुल आबादी का करीब 5.8 फीसदी है. वहीं राज्य में दलित समुदाय की जनसंख्या 2.14 करोड़ है, जो कुल आबादी का करीब 24 फीसदी हिस्सा है. इस तरह से बंगाल में अनुसूचित जनजाति और दलित समुदाय की आबादी करीब 30 फीसदी बैठती है.

ये भी पढ़ेंः- मनोरंजन ब्यापारी : रिक्शा चालक से दलित साहित्यकार तक का सफर, संघर्ष भरी कहानी

इन जिलों में हैं सबसे ज्यादा दलित आबादी
बंगाल में अनुसूचित जनजाति की आबादी दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दक्षिणी दिनाजपुर, पश्चिमी मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया इलाके में है. यहां अनुसूचित जनजाति के लिए 16 सीटें सुरक्षित हैं. वहीं, दलित समुदाय राज्य की करीब 68 सीटों पर सघन रूप से फैला हुआ है. ममता ने जिन क्षेत्रों में दलितों का समीकरण बैठाया है वो ज्यादातर इन्हीं में है. ममता बनर्जी इस बात से वाकिफ हैं कि दलितों को साधने का एक मात्र तरीका है महिलाएं या उन्हीं की जाति के लोगों को उतारना.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ममता का अनुसूचित जाति और दलितों को लेकर बैठाया गया गणित वो वाकई सोचने पर मजबूर करता है, क्योंकि दलित उम्मीदवारों का लोगों के दिलों में जगह बनाना आसान है ऐसे में तृणमूल कांग्रेस की जीत लगभग तय है.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

कांशीराम के अनमोल विचार… संयुक्‍त राष्‍ट्र में ‘दलित छात्रा’ ने बढ़ाया ‘भारत का मान’ शूरवीर तिलका मांझी, जो ‘जबरा पहाड़िया’ पुकारे गए खुशखबरी: हर जिले में किसान जीत सकते हैं ट्रैक्‍टर जब कानपुर रेलवे स्‍टेशन पर वाल्‍मीकि नेताओं ने किया Dr. BR Ambedkar का विरोध सुभाष चंद्र बोस और डॉ. बीआर आंबेडकर की मुलाकात Dr. Ambedkar Degrees : डॉ. आंबेडकर के पास कौन-कौन सी डिग्रियां थीं ‘धनंजय कीर’, जिन्होंने लिखी Dr. BR Ambedkar की सबसे मशहूर जीवनी कांशीराम के अनमोल विचार व कथन जो आपको पढ़ने चाहिए जब पहली बार कांशीराम ने संसद में प्रवेश किया, हर कोई सीट से खड़ा हो गया डॉ. आंबेडकर के पास थीं 35000 किताबें…