आंकड़ें बताते हैं कि आधुनिक भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दलितों के साथ दुर्व्यवाहर किया जाता है.
नई दिल्ली. भारतीय संविधान में देश के हर नागरिक को एक बराबर अधिकार दिए गए हैं. हालांकि समाज में दलित समुदाय को हमेशा से ही प्रताड़ित किया जाता रहा है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2007-2017 में दलित उत्पीड़न के मामलों में 66 फीसदी का इजाफा हुआ है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर 15 मिनट में दलित महिला या पुरुष के साथ एक आपराधिक घटना होती है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़े देश में दलितों की समाज में स्थिति और उनकी दशा की कहानी बयां करते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, पिछले चार साल में दलित विरोधी हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है.
साल-दर साल बढ़ रहे हैं आपराधिक मामले
2006 में दलितों के खिलाफ अपराधों के कुल 27,070 मामले सामने आए जो 2011 में बढ़कर 33,719 हो गए. वर्ष 2014 में अनुसूचित जाति के साथ अपराधों के 40,401 मामले, 2015 में 38,670 मामले और 2016 में 40,801 मामले दर्ज किए गए.
दलित महिलाओं के साथ ज्यादा दुष्कर्म की घटनाएं
आंकड़ों पर महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में भी इजाफा बताया जाता है. एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि 2006 में जहां प्रत्येक दिन दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के केवल तीन मामले दर्ज होते थे जो 2016 में बढ़कर 6 हो गए. दलितों के साथ होने वाले आत्यचारों के मामले में मध्यप्रदेश पहले स्थान हैं. जबकि राजस्थान दूसरे स्थान हैं.
आंकड़ें बताते हैं कि आधुनिक भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी दलितों के साथ दुर्व्यवाहर किया जाता है. हालांकि शहरी क्षेत्रों की स्थिति में काफी बदलाव आया है. शहरी क्षेत्रों में किसी भी व्यक्ति की जाति से ज्यादा उसकी सोच और शिक्षा को तवज्जों दी जाती है.
चुनावों के शोर के बीच आरटीआई कार्यकर्ता की हत्या
देश में दलितों के हालात कितने बुरे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों गुजरात में एक दलित आरटीआई एक्टिविस्ट अमरभाई बोरिचा को मौत की नींद सुला दिया गया. बोरिचा के परिवारवालों का कहना है कि कुछ दिनों पहले ही उन्होंने पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग की थी.
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, बोरिचा के परिवारवालों द्वारा दायर करवाई गई एफआईआर में लिखा हुआ है कि बोरिचा की सुरक्षा में इसी साल दो जनवरी को निहत्थे पुलिसकर्मी की ड्यूटी लगाई गई थी. हालांकि उनकी जान का ख़तरा ज़्यादा था और बोरिचा चाहते थे कि उनकी सुरक्षा में बंदूकधारी पुलिसकर्मी की ड्यूटी लगे. हालांकि प्रशासन को इस बात कोई फर्क नहीं पड़ा. बोरिचा सिर्फ अपने हक की लड़ाई लड़ना चाह रहे थे, पिछले दिनों बोरिचा ने गांव के विकास और मनरेगा स्कीम के फंड की जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई दाखिल की थी. बोरिचा की इस बात से ऊंची जाति के लोग नाराज थे और उन्होंने इसके खिलाफ पुलिस शिकायत भी दर्ज करवाई थी. दवाब बनाए जाने के बावजूद जब बोरिचा ने अपने कदम वापस नहीं लिए तो उनके जीवन को ही खत्म कर दिया गया.
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दलित बच्चियों से रेप के मामले में मध्य प्रदेश नंबर-1
पहले तो दलित और दूसरा औरत होना दोनों ही अपने आपमें दो बड़े चैलेंज बनकर सामने आए हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ें बताते हैं कि दलित बच्चियों से रेप (Rape), छेड़छाड़ के मामले में एमपी (MP) पहले नंबर पर है. 2019 के आंकड़ें बतात हैं कि मध्य प्रदेश में दलित बच्चियों के साथ रेप की 214 घटनाएं हुई, दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र, तीसरे नम्बर पर हरियाणा है.
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