फाइल फोटो
नई दिल्ली. अत्याचार, प्रताड़ना, सामाजिक बहिष्कार समेत कई कुरीतियों से तंग आकर भारत में रहने वाले दलित वर्ग के लोग अब बौद्ध धर्म को स्वीकार कर रहे हैं. दलित वर्ग के ज्यादातर लोगों का मानना है कि धर्म परिवर्तन करने से उनकी परेशानियों का हल निकल सकता है. 2019 में गुजरात के महेसाणा में एक ऐसा ही मामला सामने आया था. असामनता से परेशान होकर एक या दो नहीं बल्कि 400 दलितों ने धर्म परिवर्तन किया. दलितों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया है.
इसी तरह मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में आए दिन ऐसे मामले सामने आते हैं. 2019 में ही महाराष्ट्र के शिरसगांव में 500 से अधिक दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाया था. इन दोनों घटनाओं को पिछले सालों में लगातार बढ़े जातिगत तनाव और बढ़ते जा रहे अत्याचारों के खिलाफ दलितों के सामाजिक-राजनीतिक प्रतिरोध के रूप में देखा गया.
जातिगत और साम्प्रदायिक तनाव बढ़ा
एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि जब से केंद्र में मोदी सरकार आई है जातिगत एवं साम्प्रदायिक तनाव तेजी से बढ़ा है. गौरक्षा के नाम पर दलितों पर हमले काफी बढ़ गए हैं. हालांकि इससे पहले जो सरकार थी उस समय में भी स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं थी.
आंदोलनों से निकले कई नेता
दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो भी चिंता जाहिर कर चुका है. दलित महिलाओं के साथ होने वाले दुष्कर्म के मामले हों या फिर किसी अन्य कारणों से मारपीट के मामले. पिछले कई सालों में दलितों में असंतोष बढ़ा है, जिसका असर धरनों, प्रदर्शनों और आन्दोलनों के माध्यम से दिखाई दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर रावण और गुजरात में जिग्नेश मेवाणी इसी प्रक्रिया के दौरान उभरे युवा दलित नेता हैं.
ये असंतोष की भावना ही है जो अमित शाह का पश्चिम बंगाल दौरे पर दलित के घर पर भोजना करना. पीएम मोदी का दलितों के नाम संदेश देना. दलितों को मन जीतने के लिए बहुप्रचारित और सार्वजनिक आयोजन बड़े स्तर पर हो रहे हैं, लेकिन अब दलित इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है. दलितों के मन में यह बात शायद बैठ गई है कि राजनेता का उनके घर पर आना एक छलावा है.
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आज का दलित इस बात को समझ गया है कि उसकी समस्याओं का समाधान बुनियादी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों के नहीं होने वाला. उसे अगर वाकई इन चीजों से बाहर निकलना है तो उसे बौद्ध धर्म को अपनाना होगा. खासकर दलित युवा इन बातों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है इसीलिए वो बौद्ध धर्म के प्रति अपना झुकाव रखता है, ताकि रुढ़ीवादी समाज से किनारा कर सके.
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