डॉ. आंबेडकर के पास करीब 8000 किताबें थीं. उनकी मृत्यु के दिन तक ये संख्या बढ़कर 35,000 तक हो चुकी थी.
Ambedkar Jayanti : बाबा साहब डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) अपने ज़माने के संभवत: सबसे पढ़े-लिखे शख्स थे और किताबों को लेकर उनकी दीवानगी जगजाहिर थी. शुरू से ही पढ़ने-लिखने के शौकीन बाबा साहब के पास उस ज़माने में देश में क़िताबों का सबसे बेहतरीन संग्रह था. किताबों को लेकर उनका प्यार इस हद तक था कि वो सुबह होने तक क़िताबों में ही लीन रहते थे.
चेन्नई से प्रकाशित होने वाले ‘जय भीम’ (Jai Bheem) के 13 अप्रैल, 1947 के अंक में करतार सिंह पोलोनियस ने लिखा था, एक बार मैंने बाबा साहब से पूछा कि आप इतनी सारी क़िताबें कैसे पढ़ पाते हैं. इस पर उनका जवाब था, लगातार क़िताबें पढ़ते रहने से उन्हें ये अनुभव हो गया था कि किस तरह क़िताब के मूलमंत्र को आत्मसात कर उसकी फिजूल की चीजों को दरकिनार कर दिया जाए.
अनेकों किताबों को पढ़ने वाले बाबा साहब (Baba Sahab) पर तीन क़िताबों का सबसे ज्यादा असर हुआ था. इनमें पहली किताब थी ‘लाइफ ऑफ टॉलस्टाय’. दूसरी किताब थी विक्टर ह्यूगो की ‘ले मिज़राब्ल’ और तीसरी थी थॉमस हार्डी की ‘फार फ्रॉम द मैडिंग क्राउड.’
मशहूर क़िताब ‘इनसाइड एशिया’ के लेखक जॉन गुंथेर ने लिखा है कि 1938 में जब राजगृह (बाबा साहब के घर) में डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) से मेरी मुलाकात हुई थी तो उनके पास करीब 8000 किताबें थीं. उनकी मृत्यु के दिन तक ये संख्या बढ़कर 35,000 तक हो चुकी थी.
किताबों के प्रति दीवानगी को लेकर बाबा साहब के बारे में एक किस्सा और मशहूर है. बाबा साहब के निकट सहयोगी शंकरानंद शास्त्री रविवार 20 दिसंबर, 1944 की दोपहर एक बजे उनसे मिलने उनके घर गए थे तो बाबा साहब ने उन्हें अपने साथ जामा मस्जिद इलाके में चलने के लिए कहा. उन दिनों वो डॉ. आंबेडकर की पुरानी क़िताबें खरीदने का अड्डा हुआ करता था. दोपहर का वक्त था तो शंकरानंद ने बाबा साहब से यह कहने की कोशिश की कि अभी तो खाना खाने का वक्त हो रहा है, लेकिन बाबा साहब पर इसका कोई असर ना हुआ.
डॉ. आंबेडकर के जामा मस्जिद इलाके में होने की खबर चारों तरफ फैल गई. भीड़ उनके चारों ओर इकट्ठा होने लगी. इस भीड़ में भी उन्होंने अलग-अलग विषयों पर करीब दो दर्जन किताबें खरीद लीं.
बाबा साहब अपनी क़िताबें किसी को भी पढ़ने के लिए उधार नहीं देते थे. वो कहा करते थे कि अगर किसी को उनकी किताबें पढ़नी हैं तो उसे उनके पुस्तकालय में आकर पढ़ना चाहिए.”
आंबेडकर के एक और अनुयायी नामदेव निमगड़े अपनी क़िताब ‘इन द टाइगर्स शैडो: द ऑटोबायोग्राफ़ी ऑफ़ एन आंबेडकराइट’ में लिखते हैं, “एक बार मैंने उनसे पूछा कि आप इतना लंबे समय तक पढ़ने के बाद अपना ‘रिलैक्सेशन’ यानि मनोरंजन किस तरह करते हैं. उनका जवाब था कि मेरे लिए ‘रिलैक्सेशन’ यानि मनोरंजन का मतलब एक विषय को छोड़ दूसरे विषय की क़िताब पढ़ना है.”
निमगड़े ने लिखा है कि, “रात में आंबेडकर क़िताब पढ़ने में इतना खो जाते थे कि उन्हें बाहरी दुनिया का उन्हें कोई ध्यान नहीं रहता था. एक बार देर रात मैं उनकी स्टडी में गया और उनके पैर छूए. किताबों में डूबे आंबेडकर बोले, ‘टॉमी ये मत करो.’ मैं थोड़ा अचंभित हुआ. जब बाबा साहेब ने अपनी नज़रें उठाई और मुझे देखा तो वो झेंप गए. वो पढ़ने में इतने ध्यानमग्न थे कि उन्होंने मेरे स्पर्श को कुत्ते का स्पर्श समझ लिया था.”
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