आंबेडकर को 1954 में कांग्रेस ने बंडारा लोकसभा उपचुनाव में एक बार फिर हराया.
नई दिल्ली. आजाद भारत के कई ऐसी चीजें हैं या कहें कि ऐसे किस्से हैं जिन पर सिर्फ बहस होती है. इन्हीं किस्सों में से है एक है नेहरू और आंबेडकर का. अमूमन कहा जाता है कि आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) भीमराव आंबेडकर (Bhim Rao Ambedkar) को पसंद नहीं करते थे.
इतिहास के पन्नों में कई ऐसे किस्से हैं जो इस बात का साक्ष्य देते हैं. आइए जानते हैं उन किस्सों के बारे में जो इस बात का साक्ष्य देते हैं कि नेहरू आंबेडकर को पसंद नहीं करते थे.
– आंबेडकर शुरुआत से ही समाज सुधारक के तौर पर उभकर सामने आए, लेकिन ये कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थी. इन्हीं कारणों से नेहरू ने आंबेडकर को संविधान सभा से दूर रखने की प्लानिंग की थी.
– जिन 296 लोगों को शुरुआती संविधान सभा ( Constituent Assembly) में भेजा गया था उसमें आंबेडकर का नाम शामिल नहीं था. उस समय के बॉम्बे के मुख्यमंत्री बीजी खेर ने पटेल के कहने पर सुनिश्चित किया कि आंबेडकर 296 सदस्यीय निकाय के लिए नहीं चुने जाएंगे.
– जब आंबेडकर बॉम्बे के जरिए संविधान सभा में पहुंचने में नाकामयाब रहे तो उनका समर्थन करने के लिए बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल सामने आए. उन्होंने मुस्लिम लीग की मदद से आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाया.
ये भी पढ़ेंः- महाड़ आंदोलन: बाबा साहब संग अछूतों का तालाब से पानी पीकर ब्राह्मणवाद को चुनौती देना
पाकिस्तान में शामिल हो गए वो 4 जिले
जिन 4 जिलों के वोटों के जरिए संविधान सभा का हिस्सा बनें वो दुर्भाग्य पूर्ण हिंदू बहुल होने के बावजूद बंटवारे के वक्त पाकिस्तान का हिस्सा बन गए. जिसका अंजाम ये हुआ कि आंबेडकर की भारतीय संविधान सभा की सदस्यता रद्द कर दी गई और वो पाकिस्ता की संविधान सभा के सदस्य बन गए.
– पाकिस्तान बनने के बाद भारत में रहे बंगाल के हिस्सों में से दोबारा संविधान सभा के सदस्य चुने गए और संविधान निर्माण में बहुमूल्य सहयोग दिया.
– हालांकि इसके बावजूद आंबेडकर का विरोध नेहरू ने जारी रखा. साल 1952 में आंबेडकर उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे.
– इस सीट से कांग्रेस ने बड़ा दांव खेलते हुए उनके ही पूर्व सहयोगी काजोलकर को टिकट दिया.
– काजोलकर को चुनावी मैदान में उतारते हुए कांग्रेस ने तर्क दिया कि आंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे इसलिए उसके पास, उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था.
– इसका परिणाम हुआ कि 1952 में आंबेडकर चुनाव हार गए.
फिर आंबेडकर के खिलाफ चुनावी मैदान में कांग्रेस
हालांकि शांति पूर्वक आंबेडकर के विरोध का सिलसिला यहीं नहीं रूका. 1952 के बाद बंडारा में एक बार फिर आंबेडकर ने लोकसभा के उपचुनावों में हिस्सा लिया और कांग्रेस के प्रत्याशी के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इन दोनों ही चुनावों की खास बात ये रही कि नेहरू ने प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार किया और मैदान में उतरे.
Akhilesh Yadav Dr. BR Ambedkar Poster Row : अखिलेश अपनी पार्टी के दलित नेताओं का…
Rohith Vemula Closure Report: कांग्रेस ने कहा कि जैसा कि तेलंगाना पुलिस ने स्पष्ट किया…
Kanshi Ram Thoughts on Elections and BJP : कांशी राम का मानना था कि चुनावों…
लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है. यह मुख्य रूप से संबद्ध जीवन, संयुक्त…
Ravidas Jayanti 2024 BSP Mayawati message : बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने शनिवार…
Dr. BR Ambedkar Inspiring Quotes on Education : शिक्षा पर बाबा साहब डॉ. बीआर आंबेडकर…
This website uses cookies.