नई दिल्ली. संविधान के निर्माण (Indian Constitution) के साथ ही भारत में जाति के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए 1955 में कानून (Caste based law) बन दिया गया. कानून तो बन गया लेकिन दलित समेत नीचे वर्ग के लोगों को उच्च वर्ग की दुर्भावना के कारण शिक्षा, रोजगार में लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा.
आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी सरकारी आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि देशभर में निचले तबके के आधी आबादी भी अब भी भूमिहीन है. देश में बढ़ती आबादी, हाइवे, एयरपोर्ट और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जमीन पर दबाव बढ़ रहा है, जिसका नुकसान दलितों और अनुसूचित जातियों (Scheduled castes) को हो रहा है.
दफनाने के लिए दो गज जमीन तक नहीं है
हालात ये है कि दलितों के पास जीने के लिए जमीन तो है नहीं और सांसे थम जाने के बाद उन्हें दफनाने या फिर जलाने के लिए दो गज जमीन प्राप्त नहीं हो रही है. इसका ताजा उदाहरण है 23 मार्च को कर्नाटक के तुमकुरु में तीन महीने की दलित बच्ची की लाश को जमीन से उखड़वा दिया गया. जातिवादियों का कहना है कि यहां घाट दलितों के लिए नहीं है, इसीलिए दलित बच्ची के शव को वहां पर दफनाया जाए जहां पर उनकी जाति का हक हो.
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कर्नाटक के तुमकुरु में तीन महीने की दलित बच्ची की लाश को जमीन से उखड़वा दिया गया। जातिवादियों का कहना है कि यहां घाट दलितों के लिए नहीं है। इतनी क्रूरता कि रूह कांप जाए! pic.twitter.com/TXtkMs8TCH
— Vinay Ratan Singh BHIM ARMY (@VinayRatanSingh) March 23, 2021
शव को पुल के सहारे उतारा गया
यही नहीं पिछले साल दक्षिणी तमिलनाडु के इलाके में ऊंची जाति के समुदाय ने दलितों को अपनी जमीन से शवयात्रा निकालने से रोक दिया था. इसके बाद लोगों ने रस्सी के सहारे शव को पुल से नीचे उतारा ताकि वो उसका अंतिम संस्कार कर सके. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था.
ऐसा एक या दो बार नहीं बल्कि कई बार देखने को मिला है. ऐसे मामलों में जगह का मामला सुलझने के बाद ही अंतिम संस्कार होता है.
बिना जमीन न तो सम्मान, न तो ताकत
दलित के उत्थान के लिए काम करने वाले जानकारों का कहना है कि अनुसूचित जाति के जिन लोगों के पास अपनी भूमि है वो तो शांतिपूर्वक अंतिम संस्कार की विधि को पूरा कर लेते हैं, लेकिन जिनके पास अपनी जमीन नहीं हैं उन दलितों को अपने परिजनों का अंतिम संस्कार नदी किनारे या सार्वजनिक जमीन पर करना पड़ता है. जमीन के बगैर न तो दलित आबादी के पास किसी तरह की ताकत है, ना सम्मान यहां तक कि मरने के बाद भी.
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महाराष्ट्र सरकार ने मुहैया कराई जमीन
दलित अधिकार गुटों के ताजा अभियान के बाद महाराष्ट्र में प्रशासन ने दलित आबादी को अंतिम संस्कार के लिए जमीन के छोटे छोटे टुकड़े मुहैया कराए हैं.
एक नजर में….
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