जिंदगी के आखिरी चंद मिनटों में जब भगत सिंह ने कहा था-दो संदेश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और…

bhagat singh

नई दिल्ली. भारत में शहीद दिवस (Shaheed Diwas) को एक साल में अलग-अलग दिनों पर मनाया जाता है. 30 जनवरी, 23 मार्च, 21 अक्टूबर, 17 नवम्बर और 19 नवम्बर जैसी तारीखें शामिल है. आज 23 मार्च के दिन भारत मां के वीर सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दिए जाने के रूप में शहीद दिवस मनाया जा रहा है. भगत सिंह के जेल के आखिरी के चंद घंटे कैसे बीते इसके बारे में कम ही लोगों का पता है.

इतिहास साक्षी है कि भगत सिंह किताबों को पढ़ने और नई-नई चीजों को जानने के बहुत शौकीन हुआ करते थे. जेल में भी किताबों को पढ़ने का ये सिलसिला जारी रहता था. भगत सिंह ने जेल से अपने स्कूल के दोस्त जयदेव कपूर को लिखा था कि वो उनके लिए कार्ल लीबनेख़्त की ‘मिलिट्रिज़म’, लेनिन की ‘लेफ़्ट विंग कम्युनिज़म’ और आप्टन सिंक्लेयर का उपन्यास ‘द स्पाई’, कुलबीर के ज़रिए भिजवा दें.

आखिरी के दो वो घंटे…
23 मार्च 1931 के दिन जब भगत सिंह को फांसी की सजा दिए जाने का ऐलान हुआ तो महज दो घंटे पहले उनके वकील वकील प्राण नाथ मेहता उनसे मिलने पहुंचे. भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता ने बाद में लिखा कि ‘भगत सिंह अपनी छोटी सी कोठरी में पिंजड़े में बंद शेर की तरह चक्कर लगा रहे थे.’

भगत सिंह ने कोठरी के अंदर से मुस्कुराते चेहरे के साथ मेहता का स्वागत किया और बाकि कुछ पूछे सिर्फ इतना कहा कि क्या आप मेरी किता ‘रिवॉल्युशनरी लेनिन’ लेकर आए हैं? उस वक्त मेहता भी हैरान थे. जब मेहता ने उन्हें किताब दी तो वो उसे उसी समय पढ़ने लगे मानो उनके पास अब कुछ ही समय बचा हुआ है, बाद जैसे वो किताबों से कुछ ही पलों में दूर होने वाले हैं.

आंखें किताबों से हटाए बिना दिया संदेश
मेहता से किताब लेने के बाद भगत सिंह उसे पढ़ने में लग गए. जब वकील मेहता ने उनसे पूछा कि क्या आप देश को कोई संदेश देना चाहेंगे? भगत सिंह ने किताब से अपना मुंह हटाए बग़ैर कहा, “सिर्फ़ दो संदेश… साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और ‘इंक़लाब ज़िदाबाद!”

नेहरू को धन्यवाद पहुंचा देना…
भगत सिंह ने अपने वकील मेहता से कहा था कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी. भगत सिंह से मिलने के बाद मेहता राजगुरु से मिलने उनकी कोठरी पहुंचे.

हम लोग जल्द मिलेंगे
मेहता से मिलने के बाद राजगुरु ने कहा था, “हम लोग जल्द मिलेंगे.” सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वो उनकी मौत के बाद जेलर से वो कैरम बोर्ड ले लें जो उन्होंने उन्हें कुछ महीने पहले दिया था.

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