धनंजय कीर की बाबा साहब की जीवनी उनकी सबसे प्रमाणिक जीवनी मानी जाती है.
बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय इतिहास की धारा को मोड़कर रख देने वाले महानायक थे. ऐसे महापुरुष पर अनेकों किताबों का लिखा जाना स्वाभाविक है. बाबा साहब पर भी लिखी किताबों की कमी नहीं है. इन किताबों में एक पुस्तक ऐसी है जो अपने आप में ही इतिहास बन चुकी है.
यह पुस्तक बाबा साहब की जीवनी है, जिसके लेखक है धनंजय कीर. शायद ही कोई अंबेडकरप्रेमी होगा, जिसने इस किताब को न पढ़ा हो जिन्होंने इसे नहीं पढ़ा उन्होंने भी इसका नाम तो सुना ही हो. दलित आवाज डॉट कॉम (Dalitawaaz.com) आपको बता रहा है इस जीवनी के लेखक धनंजय कीर के बारे में.
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धनंजय कीर का जन्म 23 अप्रैल 1923 को महाराष्ट्र के रत्नीगिरी जिले में हुआ था. यह भी एक अद्भुत संयोग है कि बाबा साहब का परिवार भी मूल रूप से रत्नागिरी जिले के आंबडबे गांव का ही रहने वाला था.
धनंजय के पिता का नाम विट्ठल और माता का नाम देवकी था. धनंजय उनका साहित्यिक नाम था. 1935 में उन्होंने मेट्रिक परीक्षा पास की. 1938 और 1962 के बीच उन्होंने बंबई महानगर पालिका के शिक्षा विभाग में नौकरी की. 1940 में उनका विवाह सुधा से हुआ.
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धनंजय कीर ने पहली जीवनी सावरकर की लिखी जोकि 1950 में छपी. सावरकवादियों में इस जीवनी को अहम स्थान हासिल है. आगे चलकर उन्होंने बाबा साहब की प्रसिद्ध जीवनी लिखी. इस जीवनी को लिखने के दौरान कीर ने बाबा साहब से भी मुलाकात की और उनका इंटरव्यू लिया. कीर ने जब यह जीवनी पूरी कर ली तो उन्होंने इसे बाबा साहब को भेजा. इस जीवनी के हिंदी संस्करण का अनुवाद करने वाले गजानन सुर्वे लिखते हैं, ‘चरित ग्रंथ समाप्त होने पर उसकी प्रति आंबेडकर को पढ़ने के लिए देकर उनसे कुछ प्रशंसोद्गार सुने हैं.’ (डॉ बाबासाहब आंबेडकर जीवन चरित, प्रकाशक: पापुलर प्रकाशन)
सुर्वे लिखते हैं, नौकरी करना धनंजय कीर का अंतिम ध्येय नहीं था, बल्कि महामानवों का चरित रेखांकित करना उनका सर्वोच्च ध्येय था. विशेष बात यह है कि अपनी ध्येय पूर्ति के लिए ही उन्होंने त्यागपत्र दिया और दिसंबर 1962 को सेवानिवृत्त हो गए. इसके बाद मुंबई के माहिम में दो छोटे कमरों में कीर परिवार आकर रहने लगा, जहां साधारण आर्थिक स्थिति के बावजूद धनंजय कीर लगातार अमर जीवनियों की रचना करते रहे.
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हिंदी के प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने इस जीवनी के हिंदी अऩुवाद के प्राक्कथन में लिखा था, अतिश्योक्ति न होगी यदि कहें कि आज भी इस जीवनी का स्थान लेने वाली कोई और कृति नहीं है.’ (डॉ बाबासाहब आंबेडकर जीवन चरित, प्रकाशक: पापुलर प्रकाशन)
बाबा साहब के अलावा कीर ने बाल गंगाधर तिलक, ज्योतिबा फुले, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा गांधी की जीवनियां भी लिखी. उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी है जोकि मराठी में ‘कृतज्ञ मी कृतार्थ मी’ नाम से छपी है.
भारत सरकार ने उन्हें 1971 में पदमभूषण से सम्मानित किया था. 1980 में उन्हें शिवाजी विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया. इस महान जीवनी लेखक का निधन 12 मई 1984 को हुआ.
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