पूरी दुनिया बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) को भारत के संविधान निर्माता के रूप में जानती है. आधुनिक भारत की नींव रखने वालों में से एक बाबा साहब के जीवन और समय को जानने की दिलचस्पी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है, लेकिन अभी बहुत सी बातें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. ऐसी ही एक कहानी उनके सरनेम को लेकर भी है, जिसके बारे में ज्यादा लोगों को नहीं पता है. यह कहानी बहुत ही दिलचस्प है.
‘जन्म नाम था भीम, लेकिन स्कूल में लिखवाया गया भीवा’
धनंजय कीर की लिखी जीवनी को बाबासाहब पर लिखी सबसे प्रमाणिक और मशहूर जीवनी के तौर पर माना जाता है. इस जीवनी के मुताबिक बाबा साहब का जन्म नाम भीम था, लेकिन उनको घर में भीवा भी बुलाते थे और आगे के जीवन में विश्वविद्यालयी शिक्षा समाप्त होने तक भीवराव ही नाम रह गया. (डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जीवन चरित, पापुलर प्रकाशन, पृष्ठ 11)
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सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका गेल ओमवेट द्वारा लिखी बाबा साहब की जीवनी ‘अंबेडकर प्रबुद्ध भारत की ओर’ में लिखा है, ‘भीम चोहदवां बालक (अपने माता-पिता का) था, जिसे भीवा भी पुकारा जाता था’ (पृष्ठ 3).
इसी जीवनी में वह आगे लिखती हैं, ‘बाबा साहब का परिवार 1894 में सतारा आकर रहने लगा था, जहां उनके पिता राम जी को लोक निर्माण विभाग में स्टोरकीपर के पद पर नियुक्त किया गया. वहीं उनके सबसे छोटे बेटे (बाबा साहब) ने एक कैंप स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा शुरु की और वर्ष 1900 में अंग्रेजी माध्यम के एक सरकारी हाई स्कूल में पहली कक्षा में दाखिला पाया. इस स्कूल में उनका भीवा राव अंबेडकर के रूप में दाखिला हुआ. उनके नाम करण के पीछे भी एक कहानी है.’ (पृष्ठ-5)
‘बाबा साहब के पिता ने नहीं लगाया जाति दर्शाने वाला सरनेम’
दरअसल डॉ. आंबेडकर के परिवार का नाम सकपाल था. पिता रामजी मालोजी सकपाल निम्न जाति दर्शाने वाले इस उपनाम का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने यह तय किया कि वह अपने उपनाम के तौर पर अपने गांव के नाम का इस्तेमाल करेंगे.
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गेल ओमवट की किताब में इस किस्से का जिक्र करते हुए कहा गया है, ‘महाराष्ट्र में यह एक आम प्रथा है जहां ‘कर’ से समाप्त होने वाले सभी नाम स्थान सूचक होते हैं. उनके गांव का नाम अंबावाडे था और इस प्रकार उनका नाम अंबावाडेकर होना चाहिए था.’
ब्राह्मण शिक्षक, जिसकी वजह से मिला बाबा साहब को उपनाम अंबेडकर
गेल ओमवेट की किताब के मुताबिक कैंप स्कूल में बाबा साहब का एक शिक्षक अंबेडकर था और तेज बालक भीवा उसका प्रिया शिष्य था. यह शिक्षक भीवा को रोज भोजन कराता था ताकि उसे दोपहर के भोजन के लिए दूर अपने घर आना-जाना न पड़े. किताब के अनुसार उसी शिक्षक के सम्मान में बालक का नाम अंबेडकर पड़ गया.
गेल ओमवेट लिखती हैं, ‘बाद के वर्षों में जब अंबेडकर गोलमेज सम्मेलन के शिष्टमंडल के सदस्य बनाए गए, उस मौके पर उक्त शिक्षक महोदय ने अंबेडकर को एक भावपूर्ण पत्र लिखा. 1927 में जब अंबेडकर की उस शिक्षक से भेंट हुई तो उन्हें गुरू के रूप में सम्मानित किया.’ (पृष्ठ 4)
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वहीं धनंजय कीर की किताब में इस किस्से का जिक्र थोड़े अलग ढंग से आया है. वह लिखते हैं, ‘आंबेडकर गुरुजी ने भीम के लिए और एक संस्मरणीय कार्य किया भीम का कुलनाम अंबावेडकर था उन्हें ऐसा लगा यह कुल नाम ठीक नहीं अतः एक दिन आंबेडकर गुरुजी ने भीम से कहा कि वह सरल सुलभ आंबेडकर नाम धारण करे. तुरंत ही स्कूल के कागजात में उन्होंने वे नाम दर्ज कर लिया.’ (पृष्ठ -18)
कीर भी अपनी किताब में गुरु-शिष्य के बीच प्रेमपूर्ण संबंधों का जिक्र करते हैं. वह भी गोलमेज सम्मेलन के दौरान गुरु के द्वारा अपने शिष्य को लिखे गए पत्र के बारे में भी बताते हैं. कीर बाबा साहब की अपने गुरू के साथ मुंबई में हुई एक मुलाकात का भी जिक्र करते हैं जहां बाबासाहब ने अपने गुरू को पोशाक देकर सम्मानित किया था. (पृष्ठ 18)
बाबा साहेब के इन गुरुजी का नाम दोनों ही जीवनीकारों ने नहीं दिया. वीकिपीडिया के मुताबिक इस शिक्षक का नाम कृष्णा केशव अंबेडकर था. वीकिपीडिया में इस तथ्य के संदर्भ के तौर पर दिव्य मराठी की एक रिपोर्ट का जिक्र है. जिसके मुताबिक कृष्णा केशव अंबेडकर की परिवार ने आज भी गुरु-शिष्य के यादों को सहेज कर रखा है.
कॉलेज में जाकर भीवा से भीम राम आंबेडकर बन गए बाबा साहब
बाबा साहब का भीवा नाम उनके साथ हाई स्कूल तक चला. हाई स्कूल पास करने के बाद उन्होंने बंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला ले लिया. गेल ओमवेट की किताब के मुताबिक, ‘वहां सन 1913 में अंग्रेजी और फारसी में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की’. आगे वह लिखती हैं, ‘इसी दौरान बचपन से चला आ रहा उनका नाम बदल गया और कॉलेज की वार्षिक परीक्षा में उनका भीम नाम दर्ज किया गया.’
लेखक बलविंदर कौर नन्दनी दलित साहित्य पर शोधकर्ता (दिल्ली विश्वविद्यालय) व स्वतंत्र पत्रकार हैं…
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