कानूनी अधिकार

एससी/एसटी एक्ट की 20 जरूरी बातें, जो आपको पता होनी चाहिए

एडवोकेट रजत कल्‍सन

1. एससी/एसटी एक्ट (SC/ST Act) अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) व जनजाति समुदाय के लोगों को छोड़कर बाकी सभी धर्मों व समुदायों के लोगों पर लागू होता है.

2. अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act) से संबंधित शिकायत पर केस दर्ज कराने के लिए सवर्ण समुदाय के गवाह का होना जरूरी नहीं है. यह मात्र एक अफवाह है.

3. अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम की धारा 3 में 42 तरह के अपराधों का विवरण है, अगर आपके साथ इनमें से कोई भी अपराध हुआ है तो आप एससी/एसटी एक्ट के तहत पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने के हकदार हैं. अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के साथ हो रहे अत्याचार के लगभग सभी तरीकों को इस एक्ट की धारा 3 में शामिल किया गया है.

4. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार अधिनियम की धारा 18A के तहत पुलिस का आपकी शिकायत पर मुकदमा दर्ज करना जरूरी है तथा पुलिस को गिरफ्तारी के लिए किसी उच्चाधिकारी की परमिशन जरूरत नहीं पड़ेगी. इस अधिनियम के तहत अपराध करने वाले अपराधी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत का लाभ नहीं मिलेगा. परंतु हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आए एक फैसले में कहा है कि कुछ प्रथम दृष्टया ना बनने वाले मामलों में इस तरह की छूट दी जा सकती है.

5. एससी/एसटी एक्ट में शिकायत दर्ज कराने के लिए आपको अपने साथ हुई घटना का विवरण एक सफेद कागज पर लिखकर नजदीकी थाने के प्रभारी को देना होगा. उक्त थाना प्रभारी द्वारा कार्रवाई न किए जाने की सूरत में उसी शिकायत को रजिस्टर्ड डाक द्वारा जिले के डीसीपी या एसपी को भेजना होगा. उस स्थिति में भी कार्रवाई ना होने पर आप अपनी शिकायत को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग या अपने राज्य के अनुसूचित जाति आयोग को खुद या डाक द्वारा दे सकते हैं. इसके बाद भी आपकी शिकायत दर्ज नहीं होती है तो आप अपने जिले में अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत स्थापित विशेष अदालत में एक्ट के रूल 5 व धारा 14 के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए आवेदन दे सकते हैं.

6. यदि कोई किसी थाने का प्रभारी या जांच अधिकारी आपकी शिकायत पर मुकदमा दर्ज करने से मना करता है या जांच के दौरान किसी गैरअनुसूचित जाति के व्यक्ति को अनुचित लाभ पहुंचाता है या अनुसूचित जाति या जनजाति समुदाय के व्यक्ति को अनुचित नुकसान पहुंचाता है तो एससी/एसटी एक्ट की धारा 4 व भारतीय दंड संहिता की धारा 166, 166A, 217 व 219 के तहत उस पर पुलिस विभाग या अदालत में कड़ी कार्रवाई की जा सकती है.

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7. एससी /एसटी एक्ट के तहत सक्षम अदालत द्वारा किसी भी अपराधी को 6 माह से लेकर उम्रकैद/मृत्‍युदंड तक की सजा सुनाई जा सकती है व उस पर जुर्माना किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त जिस व्यक्ति को सजा हुई है, उस व्यक्ति की प्रॉपर्टी अदालत द्वारा जब्‍त करने का भी प्रावधान है. हालांकि सजा की अवधि अपराध की गंभीरता के ऊपर निर्भर करती है.

8. अगर अदालत अपनी खुद की जांच, या किसी शिकायत पर या पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर संतुष्ट हो जाती है कि कोई व्यक्ति जो गैर अनुसूचित जाति समुदाय से है उसके किसी विशेष इलाके में रहने से अनुसूचित जाति के तहत एक्ट के तहत बार-बार अपराध होने की संभावना है तो अदालत खुद की जांच, या किसी शिकायत पर या पुलिस रिपोर्ट के आधार पर उस व्यक्ति को अधिकतम 3 सालों के लिए उस इलाके से तड़ीपार घोषित कर सकती है.

8. एससी/एसटी एक्ट की धारा 14 के अनुसार अब अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई एक्ट की धारा 14 के तहत पूरे भारत में स्थापित विशेष अदालतों में ही होगी तथा इन अदालतों का संचालन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश स्तर के अधिकारी करेंगे.

9. यह सरकार तथा राज्य की ड्यूटी होगी कि वे पीड़ितों की सुरक्षा के बारे में प्रबंध करें. पीड़ितों के परिजन तथा गवाहों को किसी भी तरह की धमकियां, उत्पीड़न या हिंसा से बचाने का प्रबंध करे.

10. अत्याचार पीड़ित के साथ किसी भी थाने या अदालत में पूरी तरह सम्मान व गरिमा के साथ व्यवहार किया जाएगा.

11. अगर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट या अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत स्थापित विशेष अदालत में चल रहे मुकदमे में अपराधी के खिलाफ किसी भी याचिका, जमानत याचिका या किसी भी स्टेज की कोई सुनवाई हो रही है तो उस अदालत को उस निर्धारित सुनवाई की तिथि से पूर्व पीड़ित या उसके अधिवक्ता को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने के लिए अदालत में कानूनन मौका देना होगा.

12. यदि राज्य सरकार, पुलिस तथा प्रशासन अत्याचार पीड़ित की सुरक्षा, पुनर्वास या किसी अन्य मामले में सुनवाई नहीं कर रहा है तो एक्ट के तहत स्थापित स्पेशल कोर्ट सुरक्षा, पुनर्वास तथा अदालत तथा थानों में आने-जाने के खर्चों का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार या पुलिस को आदेश जारी कर सकती है.

13. संबंधित थाना प्रभारी को पीड़ित की एफआईआर दर्ज कर उसे एफआईआर की कॉपी तुरंत मौके पर ही देनी होगी.

14. पीड़ित की एफआईआर दर्ज होने के बाद सरकार को एससी/एसटी एक्ट की कंपनसेशन स्कीम के तहत हर अपराध के तहत दी जाने वाली कंपनसेशन राशि उसे मुकदमे के दर्ज होने के तुरंत बाद उपलब्ध करवानी होगी.

15. हत्या, सामूहिक नरसंहार, सामूहिक हिंसा, यौन अपराध, सोशल बाईकॉट जैसे अपराधों में राज्य सरकार पुलिस प्रशासन को तुरंत पीड़ितों को भोजन, पानी, कपड़ा, चिकित्सा सुविधा, परिवहन ,रोजाना गुजारा भत्ता जैसी सुविधाएं तुरंत उपलब्ध करानी होगी.

16. जांच एजेंसी को पीड़ित द्वारा दर्ज कराए गए केस की जांच का स्टेटस, अदालती कार्रवाई का स्टेटस तथा अदालत में दायर की गई चार्जशीट की कॉपी की प्रति व उसका स्टेटस तुरंत पीड़ित को या उसके अधिवक्ता को बताना होगा.

17. जिला मजिस्ट्रेट या उपमंडल मजिस्ट्रेट अपने हद में आने वाले इलाके, अगर उसमें दलितों के साथ अत्याचार की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं तो उस इलाके को अत्याचार प्रभावित क्षेत्र घोषित कर सकते हैं तथा वहां के गैरअनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के खिलाफ उस इलाके में शांति तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए निवारक कार्यवाही कर सकते हैं.

18. राज्य सरकारें किसी इलाके को अत्याचार प्रभावित क्षेत्र घोषित करने के बाद उस इलाके में पीड़ित समुदाय की सुरक्षा के लिए वहां पर एससी/एसटी प्रोटेक्शन सेल का गठन कर सकेंगे.

19. राज्य सरकार या जिला प्रशासन को पीड़ित व्यक्ति या व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए उन्हें राजकीय नियमों की पालना के बाद शस्त्र लाइसेंस उपलब्ध कराने होंगे.

20. अदालत में अत्याचार पीड़ितों को खुद के केस की पैरवी के लिए खुद की पसंद का वकील स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के तौर पर नामांकित करा सकेंगे. इसकी फीस राज्य सरकार को देनी होगी.

अगले लेख में आपको बताएंगे, इस एक्ट के तहत होने वाले अपराधों के विवरणों के बारे में…

ये भी पढ़ें- अपमानजनक पोस्‍ट दिखने पर क्‍या करें दलित? यह है शिकायत का सही कानूनी रास्‍ता

 

dalitawaaz

Dalit Awaaz is the Voice against Atrocities on Dalit & Underprivileged | Committed to bring justice to them | Email: dalitawaaz86@gmail.com | Contact: 8376890188

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  • बिशम्बर सिंह भाँकला सहारनपुर यूपी भारत बामसेफ says:

    कानून तो है परन्तु कोई सुन ही नहीं रहा है ।

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