कोलकाता. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों (West Bengal Assembly Elections 2021) में दलित वोटरों (Dalit Voters) के हाथ में सत्ता की चाबी है. 2019 के लोकसभा चुनावों में दलितों की बदलौत ही बीजेपी (BJP) इतनी बड़ी मात्रा में सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं, कांग्रेस महज 2 सीटों पर सिमट गई.
अब 2021 में हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल है कि क्या दलित वोटर्स पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का गणित बिगाड़ेंगे और इसका फायदा बीजेपी को होगा.
क्या कहते हैं ओपिनियम पोल?
इसे जानने का एक तरीका ओपिनियन पोल भी है. C-Voter Times Now का पोल सामने आया था. इसमें दावा किया गया था कि टीएमसी को 42% वोट मिलते दिख रहे हैं. इसी के साथ पार्टी राज्य में 146 से 162 सीटें जीत सकती है. जबकि भाजपा 38% वोटों के साथ 99-115 सीटें जीतती नजर आ रही है.
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तृणमूल कांग्रेस नेताओं को पलायन बदलेगा गणित
हालांकि अभी महज एक चरण के मतदान ही पूरे हुए हैं इसलिए इस पोल को पूरा नहीं कहा जा सकता है. वर्तमान में जिस तरह से टीएमसी नेताओं को बीजेपी में पलायन जारी है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि मतदाता की रणनीति कभी भी बदल सकती है. इसके अलावा वाम-आईएसएफ-कांग्रेस को मिलने वाला हर वोट का मतलब टीएमसी के लिए वोट का कम होना है.
आइए समझते हैं किसे होगा फायदा और किसे नुकसान
– आंकड़ों के मुताबिक, वर्ममान में टीएमसी के पारंपरिक वोटों में गिरावट दर्ज की गई है. टीएमसी से बीजेपी में जाने वाला वोट लेफ्ट और कांग्रेस से टीएमसी में जाने वाले वोट से पूरा होता दिख रहा है.
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– दलित वोटर्स टीएमसी से दूर होते नजर आ रहे है.
– दलित के अलावा पश्चिम बंगाल में रहने वाले आदिवासी वोटर्स भी ममता बनर्जी की पार्टी से खफा हैं और बीजेपी का रूख कर चुके हैं.
– राज्य में रहने वाले दलित लगातार टीएमसी से बीजेपी का रूख कर रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है एनआरसी.
– बीजेपी के पक्ष में छोटी छोटी जातियों का एकजुट होना निश्चित है. वहीं, चुनावी नतीजे तय करने में मुस्लिम वोट लगातार अप्रासंगिक हो रहे हैं. वहीं, बंगाल में कांग्रेस और कम्युनिस्ट स्थाई राजनीतिक विस्मरण का सामना कर रहे हैं.