बाबा साहब डॉक्टर बी आर आंबेडकर (Baba Saheb Dr. BR Ambedkar) के नीचे दिए गए इस उद्धरण से मान्यवर कांशीराम (Manyavar Kanshi Ram) अपनी बेहद प्रसिद्ध रचना चमचा युग (The Chamcha Age) में चमचों की परिभाषणा हमें समझा रहे हैं. साहेब कांशीराम (Kanshi Ram ke Vichar) के नजरिये से समझिए चमचा क्या होता है?
एक जाने पहचाने मुहावरे का प्रयोग करें तो हिंदुओं के नजरिए से संयुक्त निर्वाचक मंडल एक रॉटन बरो (जीर्ण-शीर्ण उपनगर है) जिसमें हिंदुओं को एक अछूत के नामांकन का अधिकार मिलता है तो नाम मात्र को अछूतों का प्रतिनिधि होता है. किंतु वास्तव में वह हिंदुओं का औजार होता है. – डॉ. बीआर आंबेडकर
मान्यवर कांशीराम (Kanshi Ram) लिखते हैं कि ‘चमचा युग में वह कहते हैं ‘डॉक्टर आंबेडकर (Dr. Ambedkar) ने इस उत्तरण में हिंदुओं का औजार शब्द प्रयोग किया है. उन्होंने अनुसूचित जातियों के लिए जिन राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त किया था, उनके संदर्भ में वे अक्सर ही शब्द हथियार का प्रयोग करते रहे थे. औजार के अतिरिक्त वह दूसरे शब्दों का भी प्रयोग करते रहे थे. जैसे हिंदुओं का दलाल अथवा हिंदुओं का पिट्ठू. संयोगवश उन्हें पूरे जीवन में अनुसूचित जातियों के राजनीतिक दलों (Scheduled Castes Political Parties) को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में किन औजारों, दलालों और पिट्ठूओं से निपटना पड़ा था’.
भूखे-प्यासे और साइकिल भी पंचर… मान्यवर कांशीराम का 5 पैसे वाला ‘प्रेरक किस्सा’
ऊंची जातियों के हिंदुओं के इन औजारों, दलालों और पिट्ठूओं की संख्या और किस्मों में समय बिताने के साथ बढ़ोतरी होती रहती है. स्वाधीनता उपरांत काल की राजनीतिक अनिवार्यताओं के चलते इन औजारों, दलालों और पिट्ठूओं को बहुत प्रोत्साहन मिला. 1956 में बाबा साहब डॉक्टर बी. आर आंबेडकर के दुखद परिनिर्वाण के बाद यह प्रक्रिया इतनी तेज हो गई कि आज ऊंची जाति हुई हो कि हिंदुओं के औजार, दलाल और पिट्ठू केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि मानव गतिविधि और संबंध के प्रत्येक क्षेत्र में भारी संख्या में मिल जाते हैं. प्रारंभ में तो यह औजार, दलाल और पिट्ठू केवल डॉक्टर आंबेडकर और पैनी दृष्टि वालों को ही दिखाई देते थे. बाद में बुद्धिजीवी वर्ग को भी वह दिखाई देने लगे. किंतु आज औजार, दलाल और पिट्ठू दैनिक जीवन में इतने आम हो गए हैं कि आम आदमी भी उन्हें जनता के बीच आसानी से पहचान सकता है.
Kanshi ram ke Vichar: कांशीराम के अनमोल विचार-कथन, पार्ट-3
मान्यवर कांशीराम (Kanshiram) कहते हैं कि ‘आम आदमी की अपनी एक अलग शब्दावली होती है. उसकी शब्दावली में एक औजार, दलाल और पिट्ठू को चमचा कहा जाता है. इस पुस्तक में मैंने अपने आम आदमी की शब्दावली इस्तेमाल करने का फैसला किया है. मेरा सोचना है कि जब हम आम आदमी के मकसद के लिए लड़ रहे हैं तो हमें उसी की शब्दावली का प्रयोग करने से लाभ होगा. चमचा एक देसी शब्द है, जिसका प्रयोग उस व्यक्ति के लिए होता है जो अपने आप कुछ नहीं कर सकता, बल्कि कुछ करवाने के लिए किसी और की जरूरत होती है और वह कोई और व्यक्ति उसका इस्तेमाल हमेशा अपने निजी फायदे और भलाई के लिए अथवा अपनी जाति की भलाई के लिए करता है जो चमचे की जाति के लिए हमेशा अहितकारक होता है’.
जब पहली बार मान्यवर कांशीराम ने संसद में प्रवेश किया, हर कोई सीट से खड़ा हो गया था…
वह कहते हैं कि इस पुस्तक में हम औजार, दलाल और पिट्ठू के मुकाबले चमचा शब्द का प्रयोग अधिक करेंगे. भारतीय संदर्भ में और आम आदमी के लिए यह शब्द अधिक प्रभावी होगा, क्योंकि अर्थ के अतिरिक्त यह अधिकतम प्रभाव के साथ भावना को भी कम व्यक्त करता है. इन चारों शब्दों, चमचा, पिट्ठू, दलाल और औजार का अर्थ एक ही होता है. इसलिए उनका इस्तेमाल अर्थ और भाव को व्यक्त करने में उनकी प्रभाविकता पर निर्भर करेगा.