बात 1991 की है, जब मान्यवर कांशीराम (Kanshi Ram) इटावा (Etawah) से लोकसभा चुनाव जीते. इस चुनाव में कड़े संघर्ष के बावजूद भी मान्यवर कांशीराम ने भाजपा (BJP) के उम्मीदवार को 20,000 से ज्यादा वोटों से हराया. मान्यवर की जीत से न केवल कार्यकर्ताओं, बल्कि पूरे बहुजन समाज में खुशी की लहर सी दौड़ गई. मान्यवर की इस जीत पर उन्हें देश-विदेश से असंख्य बधाई संदेश मिले.
मान्यवर कांशीराम (Manyavar Kanshiram) ने 20 नवंबर 1991 को सुबह 11 बजे संसद में अपना पहला कदम रखा. उस वक्त तक संसद में सभी सांसद प्रवेश कर चुके थे. संसद के मुख्य द्वार पर उनके पहुंचते ही बड़ी संख्या में पत्रकार, फोटोग्राफरों ने उन्हें घेर लिया. फोटोग्राफरों ने उनके इतने फोटो खींचे की फ्लैश लाइट से बिजली सी चकाचौंध हो गई.
जब कांशीराम साहब (Kanshi Ram Saheb) संसद (Parliament) की सीढियां चढ़ रहे थे, तब भी फोटोग्राफर उनकी फोटो खींचे जा रहे थे, जिससे मान्यवर को सीढ़ी पर रूक-रूककर चढ़ना पड़ रहा था. इसकी वजह यह थी कि अब तक संसद में सांसद तो बहुत जीतकर आए थे, लेकिन मान्यवर की जीत पत्रकारों की निगाह में बेहद मायने रखती थी. यही वजह थी कि उनके इंतजार में पत्रकार सुबह से ही वहां खड़े हुए थे.
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इसके बाद Etawah से सांसद बने साहेब कांशीराम (Kanshi Ram) ने आगे बढ़ते हुए संसद के मुख्य हाल में प्रवेश किया. उन्हें देखते ही सबसे पहले लोकसभा अध्यक्ष शिवराज पाटिल (Shivraj Patil) अपनी सीट छोड़कर खड़े हुए और उन्हें लेने पहुंचे. उनसे हाथ मिलाया. जैसे ही साहेब ने मुख्य हाल में प्रवेश किया तो अंदर बैठे सभी सांसदों ने अपने स्थान पर खड़े होकर उनका इस तरह स्वागत किया जैसे संसद में प्रधानमंत्री के स्वागत में सांसद खड़े होते रहे हैं.
उस वक्त के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) और अन्य पार्टियों के सभी बड़े नेताओं ने भी आगे बढ़कर मान्यवर कांशीराम से हाथ मिलाया. शून्यकाल से पहले जब मान्यवर को शपथ दिलाई गई तो पूरी संसद तालियों से गूंज उठी. मान्यवर ने अंग्रेजी में शपथ ग्रहण की. इस तरह उन्होंने न केवल शून्य से शिखर तक का सफर तय किया, अपितु भारतीय राजनीति में उनकी इस आगाज ने देश की राजनीति की दिशा भी बदल दी.