आरक्षण

हर पद पर ब्राह्मणों के कब्‍जे से नाराज थे शाहूजी महाराज, आज ही जारी किया था आरक्षण का गजट

नई दिल्‍ली : आजादी हासिल करने के 70 साल बाद भी आज समाज में जातीय व्‍यवस्‍था (Caste System) और मजबूत होती जा रही है. ऐसे में दोबारा उन समाज सुधारकों की याद करने की जरूरत महसूस होती है, जिन्‍होंने समाज में असमानता, जातिभोद, ऊंच नीच के बर्ताव को समाप्‍त करने में अपना जीवन लगा दिया. ऐसे ही समाज सुधारकों में एक थे, छत्रपति शाहूजी महाराज (Chhatrapati Sahuji Maharaj). शाहू जी महाराज ने विशेष रूप में दलितों (Dalits) के प्रति जातिभेद, ऊंच नीच का व्‍यवहार समाज में खत्‍म करने के लिए संघर्ष किया. विशेषकर उनकी शिक्षा में. दलितों को आरक्षण (Reservation) के जनक भी छत्रपति शाहूजी महाराज (Chhatrapati Sahuji Maharaj) ही हैं.

26 जुलाई 1902 का दिन दलित समाज के लिए ऐतिहासिक है, क्‍योंकि आज ही के दिन कोल्‍हापुर रियासत (Kolhapur) के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ों को सरकारी सेवाओं में भागीदारी के लिए आरक्षण (Reservation) की नींव रखी थी. इसी वजह से उन्‍हें आरक्षण का जनक भी कहा जाता है.

26 जुलाई, 1902 को उन्होंने राजकाज के सभी क्षेत्रों में उच्च जातियों के एकछत्र वर्चस्व को तोड़ा और पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया था, जिसका गजट नोटिफ‍िकेशन आज ही दिन जारी किया गया था. उन्‍होंने पिछड़े वर्ग में मराठा, कुनबियों एवं अन्य समुदायों के साथ दलितों एवं आदिवासियों को भी उन्होंने शामिल किया था. उन्होंने इस संदर्भ में जो आदेश जारी किया था, उसमें साफ लिखा है कि पिछड़े वर्ग में ब्राह्मण, प्रभु, शेवाई और पारसी को छोड़कर सभी शामिल हैं. शाहूजी ने इस तरह सामाजिक असमानता को खत्म करने एवं न्याय के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया.

शाहूजी महाराज के उक्‍त कदम उठाने के पीछे बड़ी वजह यह भी थी कि कोल्हापुर राज्य में नौकरशाह एवं कर्मचारी के रूप में हर जगह ब्राह्मण कब्जा जमाए बैठे थे, वह समाज के अन्‍य किसी तबके को इन पदों पर आसीन नहीं होने देते थे. उन्‍होंने कोल्हापुर राज्य में जीवन के सभी क्षेत्रों में नीचे से ऊपर तक ब्राह्मणों के पूर्ण वर्चस्व को पाया और गैर-ब्राह्मणों की अनदेखी पर गौर किया. लिहाजा, उनका पुरजोर तर्क यह था कि गैर-ब्राह्मणों को पृथक प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण दिए बिना कोल्हापुर राज्य में न्याय का शासन स्थापित नहीं किया जा सकता.

उन्‍होंने यह भी पाया था कि उनके दरबार में 71 उच्‍च पदों में से 60 ब्राह्मण थे, जबकि 11 अन्‍य अधिकारीगण बाकी जातियों से ताल्‍लुक रखते थे. निजी सेवा में भी 52 में से 42 ब्राह्मण थे. उन्‍होंने अपने दरबार में भी पदों पर समाज के सभी तबकों का प्रतिनिधित्‍व सुनिश्चित किया.

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