Dr BR Ambedkar said People will recognize their Fundamental Rights and know what Indian Constitution means to them
भारत सरकार के कानून मंत्री डाॅ. भीमराव आंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) ने हैदराबाद का निरीक्षण किया था. उन्होंने दिनांक 24.5.1950 को हैदराबाद प्रोग्रेसिव ग्रुप के तत्वावधान में बोर क्लब में आयोजित एक बैठक को सम्बोधित किया. संवाददाताओं और उपस्थित श्रोताओं ने उनसे भारतीय संविधान (Indian Constitution) , लोकतंत्र, अस्पृश्यता आदि के बारे में कुछ प्रश्न किए थे.
सुभाष चंद्र बोस और डॉ. भीमराव आंबेडकर की मुलाकात
भारत में संसदीय लोकतंत्र
कभी-कभी मेरे मन में विचार आता है कि भारत में लोकतंत्र का भविष्य अत्यंत अधकारमय है. परन्तु मैं यह भी नहीं कहता कि ऐसे क्षण नहीं आते जब मैं महसूस करता हूँ कि यदि हम सब मिलकर और एकजुट होकर “संवैधानिक नैतिकता” के प्रति समर्पित रहने की प्रतिज्ञा करें तो हम एक ऐसा नियमित पार्टी तंत्र तैयार करने में समर्थ होंगे जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना हो सकती है.
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भारत के संविधान में निहित मूल अधिकार
डॉ. बीआर आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) ने कहा, यह मान लेना गलत होगा कि मूल अधिकारों ने नागरिकों को परम अधिकार प्रदान कर दिए हैं. मूल अधिकारों के संबंध में हमारी कुछ सीमाएँ हैं जो राज्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं. संविधान का प्रारूप जब हमने तैयार किया था तो हमने इस बात का ध्यान रखा था कि मूल अधिकारों की सीमा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नाजायज तरीके से प्रभावित न कर सके. मूल अधिकारों की सर्वोत्तम गारंटी संसद में एक अच्छे विपक्ष का होना है और ऐसा होने पर सरकार अपना व्यवहार उचित रखेगी.
दूसरा रक्षोपाय कानूनी था. उदाहरण के लिए- एक मंत्री ने सी.आई.डी. की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके निवारक अभिरक्षा में रखा है. इस मामले में प्रश्न उठता है कि क्या सी.आई.डी. की रिपोर्ट वास्तविक थी. इस प्रश्न का समाधान बहुत कठिन है. मुझे यह विचार करना चाहिए था कि कानूनी प्रवीणता से ऐसा कोई तरीका होना चाहिए जो ऐसी रिपोर्टों पर कार्यवाही करने में मंत्री के अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध अथवा कुछ सीमाएं लगाता हो, ताकि कार्यकारी कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हो और पेश की गई रिपोर्ट ठोस और वास्तविक हो. यदि ऐसा किया जाता है तो मेरे विचार से उच्चतम न्यायालय का होना एक अन्य रक्षोपाय है. भारत अभी संक्रमण की स्थिति में है. जब यू.एस.ए. ने अपना संविधान तैयार किया था और उसमें मूल अधिकारों को शामिल किया था, तब वहाँ लोग नहीं जानते थे कि उन अधिकारों का स्वरूप, दायरा और सीमाएँ क्या हैं. उच्चतम न्यायालय के न्यायिक निर्णयों की लम्बी शृंखला के बाद कठिनाइयों का निवारण हुआ और मूल अधिकारों के स्वरूप, दायरे और सीमाओं का निर्धारण किया गया. इसी प्रकार मुझे विश्वास है कि पाँच या दस वर्ष बाद भारत के लोग अपने मूल अधिकार पहचानेंगे और जानेंगे कि भारतीय संविधान (Indian Constitution) उनके लिए क्या मायने रखता है.
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