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Dalit Success Story: दलित IPS ऑफि‍सर प्रवीण कुमार, जिन्‍होंने दलितों को नई पहचान दी

“मैं अपने शेष जीवन का उपयोग महात्मा फुले दंपत्ति, बाबा साहब डॉ. बी आर आंबेडकर, कांशीराम और सामाजिक न्याय के लिए मशाल जलाने वाले अन्‍य महापुरुषों के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए करूंगा “… एक दलित आईपीएस अफसर आरएस प्रवीण कुमार (Senior Dalit IPS officer Dr RS Praveen Kumar) ने अपने पद से रिजाइन देने के बाद ये महान विचार सोशल मीडिया पर व्‍यक्‍त किए. प्रवीण कुमार ने मुख्य सचिव सोमेश कुमार को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग करने वाला पत्र सौंपने के बाद अपने सोशल मीडिया पोस्ट में यह बात कही. (Dalit Success Story)

दलित IPS आरएस प्रवीण कुमार (Senior Dalit IPS officer Dr RS Praveen Kumar) वो हैं, जिन्‍होंने दलितों को नई पहचान दी है. जब वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डॉ आरएस प्रवीण कुमार (IPS RS Praveen Kumar) ने बीते सोमवार को सरकारी सेवा से स्वेच्छा से पद छोड़ने की घोषणा की, तो यह निश्चित रूप से तेलंगाना सामाजिक कल्याण आवासीय शिक्षण संस्थानों (Telangana Social Welfare Residential Educational Institutions Society (TSWREIS) के असंख्य छात्रों के लिए एक बड़ा झटका था. TSWREIS को प्रवीण कुमार ने पिछले नौ वर्षों में उत्कृष्टता के संस्थानों में बदल दिया है.

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दरअसल, तेलंगाना सरकार ने अनुसूचित जाति (एससी) समुदायों के सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को ध्‍यान में रखते हुए बिना किसी आर्थिक बोझ के एससी समुदायों के लिए अलग स्कूल शुरू किए थे, जिसका मकसद अनुसूच‍ित जाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक बेहतर पहुंच प्रदान करना है. इसके तहत मुख्य रूप से अनुसूचित जाति समुदायों के आबादी वाले क्षेत्रों में समाज कल्याण आवासीय विद्यालयों की स्थापना की गई. २६८ विघालय/शिक्षण संस्‍थान वाली यह सोसायटी १५०००० छात्रों को स्नातक तक अंग्रेजी माध्यम में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करती.

यह एक निर्विवाद तथ्य है कि तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस सोसाइटी (TSWREIS) के सचिव के रूप में प्रवीण कुमार ने दलितों के लिए कम से कम तेलंगाना में पिछले नौ वर्षों में एक नई पहचान क्रांति की है.

दरअसल, प्रवीण कुमार को दलित शब्द पसंद नहीं है. उनके अनुसार दलित शब्द हाशिये पर पड़े वर्गों पर उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में थोपा गया था, इसलिए उन्होंने एक नया शब्द गढ़ा – SWAERO, जिसमें SW का अर्थ समाज कल्याण और “एयरो” आकाश के लिए प्रयोग किया गया. उनका मानना है कि अवसर दिए जाने पर अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए आकाश तक सीमा है.

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TSWRERIS के सचिव के रूप में कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि समाज कल्याण संस्थानों के सभी छात्र अपने नाम के साथ “Swaero” अवश्य जोड़े. यहां तक आईपीएस अधिकारी ने खुद के नाम के आगे भी स्‍वेरो शब्‍द जोड़ा है. इस तरह उनका नाम डॉ आर एस प्रवीण कुमार स्वेरो है.

केवल उनके छात्र ही नहीं, तेलंगाना में पूरे दलित समुदाय के लिए स्वेरो शब्द एक चर्चा का विषय बन गया है, जिससे उन्हें एक नई पहचान मिली है. वे अब खुद को “स्वारोस” कहने में गर्व महसूस करते हैं और अपने दैनिक जीवन में उनका उल्लेख करते हैं, चाहे वह शादी के कार्ड में हो या उनके व्यावसायिक उपक्रमों में या अन्य व्यवसायों में.

प्रवीण कुमार ने एक स्वेरो एंथम भी बनाया है, जिसे समाज कल्याण संस्थानों के छात्र हर दिन पढ़ते हैं, ताकि उन्‍हें अपनी पहचान की भावना महसूस हो और उन्हें अपनी वास्तविक क्षमता को फिर से खोजने में मदद मिल सके. उन्होंने छात्रों के लिए 10 आज्ञाएं भी बनाई हैं, जिनमें पहली कहती है: “मैं किसी से कम नहीं हूं,” और अंतिम कहती है: “मैं कभी हार नहीं मानूंगा.”

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पिछले कुछ वर्षों में, यह “Swaero आंदोलन” सोशल मीडिया और सार्वजनिक अभियान के माध्यम से पिछड़े वर्गों में फैल गया है. यह अब एक जन आंदोलन के रूप में बन गया है, जिसने उन्हें समाज में उनके लिए गर्व और सम्मान की भावना खोजने में मदद की है.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र, 1995-बैच के आईपीएस अधिकारी डॉ. प्रवीण कुमार का मानना था कि हाशिए पर पड़े वर्गों के उत्थान के लिए अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा ही एकमात्र तरीका है. यही कारण है कि उन्होंने सामाजिक कल्याण आवासीय संस्थानों में शैक्षिक मानकों को बेहतर बनाने के लिए बहुत प्रयास किए.

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वे शैक्षिक विशेषज्ञों को सेवाओं में लाए, अध्यापन में नवीनतम रुझानों की शुरुआत की और शिक्षकों को लगातार नई शिक्षण विधियों को अपनाने की तरफ लगे रहे. उनके प्रयासों ने छात्रों के आत्मविश्वास को इतना बढ़ाया कि कई सामाजिक कल्याण संस्थानों के छात्र तथाकथित कॉन्वेंट स्कूलों के कई छात्रों की तुलना में धाराप्रवाह और बेहतर अंग्रेजी बोल सकते हैं.

न केवल शिक्षाविदों में प्रवीण कुमार ने अपने छात्रों के सर्वांगीण विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया और उन्हें खेल, साहसिक खेलों और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया. निजामाबाद जिले के एक आदिवासी छात्र मालवथ पूर्णा को दिए गए उनके अपार प्रोत्साहन को कौन भूलेगा, जो 2014 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की लड़की बनी थी. प्रवीण कुमार के पूर्णा को प्रोत्साहन से प्रेरणा लेते हुए कई दलित छात्रों ने पर्वतारोहण और घुड़सवारी और एथलेटिक्स जैसे खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है.

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23 नवंबर, 1967 को महबूबनगर जिले के आलमपुर में एक गरीब परिवार में जन्मे प्रवीण कुमार अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, शिक्षकों को देते हैं, जिन्होंने उन्हें गरीबी, अपमान और सामाजिक भेदभाव का सामना करते हुए एक आईपीएस अधिकारी के रूप में तैयार किया. उन्होंने पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की, हार्वर्ड विश्वविद्यालय गए और एडवर्ड एस मेसन फेलो बन गए.

लगभग 17 वर्षों तक पुलिस सेवा में रहने के बाद प्रवीण कुमार ने हाशिए के वर्गों के छात्रों की सेवा करने के अपने सपने को साकार करने के लिए TSWREIS में काम करने का विकल्प चुना.

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