भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. बीआर आंबेडकर (Bharat Ratna Baba Sahab Dr. BR Ambedkar) को लेकर मान्यवर कांशीराम (Manyavar Kanshi Ram ke Vichar) के अनमोल विचार व कथन नीचे पढ़ें…
हम यह पहले भी देख चुके हैं कि हमारे समाज में चमचों की बहुतायत ने किस प्रकार आंबेडकरी आंदोलन (Ambedkar Movement) को नष्ट कर दिया था. चमचा युग (Chamcha Yug) का एक अनिष्टकर प्रभाव यह हुआ कि अनुसूचित जनजातियां अपने ही भले के लिए राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करने की राजनीतिक क्षमता विकसित नहीं कर पाईं.
डॉ. आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) बेहद बुद्धिमान थे कि उन्होंने पहले अन्य पिछड़ी जातियों की मान्यता पर जोर दिया, जबकि गांधी 1930-32 के गोलमेज सम्मेलनों (Round Table Conferences of 1930-32) के दौरान बिना मान्यता के अधिकारों के लिए बना रहे थे.
अन्य पिछड़ी जातियां दावा करती हैं कि वे शून्य हैं. कैसी दुखद स्थिति है? कैसे व्यापक प्रभाव हैं चमचा युग के?
बहुसंख्यकों को अज्ञान और असहायता की स्थिति में रखने की चिंता में, शासक जातियों ने देश को गरीब और पिछड़ा बनाए रखा.
बाबा साहेब डॉ. बीआर आंबेडकर (Baba Sahab Dr. Bhim Rao Ambedkar) दलितों के हक में गरजने वाले पहले दलित वीर थे, जो इंग्लैंड की राजधानी लंदन में जाकर भी अपने अधिकारों के लिए तत्कालीन हुकूमरानों तथा हिंदुओं के दबंग नेताओं से जा भिड़े.
आज भी जब कमजोर तबके अपनी आवाज, अपना सिर उठाते हैं तो उनका उत्पीड़न किया जाता है.
चमचा युग की चुनौती से निपटने के लिए डॉ. आंबेडकर अनेक तरीके और साधन तैयार करने में समर्थ रहे.
इनमें सबसे अच्छा तरीका और साधन था उनकी सुनियोजित अवधारण शिक्षित बनो, संगठित रहो तथा संघर्ष करो (Shikshit Bano, Sangathit Raho, Sangharsh Karo).
(Manyavar Kanshi Ram ke Vichar)