सफल दलित

बहुजन नायक ललई सिंह यादव, जो उत्तर भारत के ‘पेरियार’ कहलाए…

पेरियार ललई सिंह यादव (Periyar Lalai Singh Yadav) भारत में ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के खिलाफ सड़क से लेकर अदालत तक लड़ाई लड़ने वाले अगुआ नायकों में एक रहे हैं. उन्‍हें हिन्दू जाति व्यवस्था से इतनी नफरत थी कि उन्होंने अपने नाम से ‘यादव’ शब्द तक हटा दिया था. वे हिंदी पट्टी में उत्तर भारत के पेरियार के रूप में प्रसिद्ध हुए. दरअसल, ललई सिंह पेरियार की चर्चित किताब ‘सच्ची रामायण’ (Sacchi Ramayana) को हिंदी में लाने और उसे पाबंदी से बचाने के लिए लंबा संघर्ष करने वाले बहुजन क्रांति के नायक हैं. 1968 में ललई सिंह ने ‘द रामायना: ए ट्रू रीडिंग’ का हिन्दी अनुवाद कराया और उसे ‘सच्ची रामायण’ नाम से प्रकाशित करवाया. पेरियार की सच्ची रामायण का हिंदी अनुवाद आते ही उत्तर भारत में एक बड़ा तूफान उठ खड़ा हुआ था. इस किताब की इतनी चर्चा हुई कि हिन्दू धर्म के तथाकथित रक्षक भड़क उठे और इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए. नतीजतन, तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Govt) ने दबाव में आकर 8 दिसंबर 1969 को धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में किताब को जब्त कर लिया और यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया.

ब्राह्मणवाद (Brahminism) के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने वाले ‘पेरियार’ ललई सिंह (Periyar Lalai Singh Yadav) को आज उनके जन्‍मदिवस (इनका जन्‍म 1 सितम्बर 1911 को हुआ था) पर श्रद्धांजलि देते हुए dalitawaaz.com की ओर से यह लेख उन्‍हें समर्पित…

बहुजन नायक पेरियार ललई सिंह (Bahujan Nayak Periyar Lalai Singh) का जन्म 1 सितम्बर 1911 को कानपुर देहात के झींझक रेलवे स्टेशन के पास कठारा गांव में हुआ. 1933 में वह मध्‍यप्रदेश के ग्वालियर के सशस्त्र पुलिस बल में सिपाही के रुप में भर्ती हुए, लेकिन कांग्रेस के स्वराज का समर्थन करने के कारण, जिसे ब्रिटिश हुकूमत में जुर्म माना जाता था, उन्‍हें दो साल बाद बर्खास्त कर दिया गया. हालांकि अपील पर उन्‍हें बहाल कर दिया गया. उन्होंने ग्वालियर में 1946 में ‘नान-गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एण्ड आर्मी संघ’ की स्थापना की, जिसका मकसद उच्च अधिकारियों से लड़ते हुए पुलिसकर्मियों की समस्याएं उठाना था.

ललई सिंह ने साल 1946 में ‘सिपाही की तबाही’ नामक एक किताब लिखी. हालांकि यह प्रकाशित तो नहीं हो पाई, लेकिन उसे टाइप करते हुए सिपाहियों में बांट दिया गया. हालांकि सेना इंस्पेक्टर जनरल को जैसे ही इस किताब के बारे में पता चला तो उनकी ओर से उसे जब्त कर लिया गया.

करीब एक साल बाद ललई सिंह ने ग्वालियर पुलिस और आर्मी में हड़ताल करा दी, जिसके चलते उन्‍हें 29 मार्च 1947 को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें 5 साल की सश्रम सजा सुनाई गई. वह 9 महीने तक जेल में रहे. भारत के आजाद होने पर ग्वालियर स्टेट के भारत गणराज्य में विलय के बाद वह 12 जनवरी 1948 को जेल से रिहा कर दिए गए.

साल 1950 में सरकारी सेवा से मुक्त होने के बाद ललई सिंह ने अपना जीवन पूरी तरह बहुजन समाज की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया. उन्हें इसका आभास हो चुका था कि ब्राह्मणवाद के खात्मे के बिना बहुनजों की मुक्ति नहीं हो सकती.

Advertisements

इसके बाद पेरियार से पहली मुलाकात के समय ही ललई सिंह ने उनकी पुस्तक ‘रामायण : ए ट्रू रीडिंग’ को हिंदी में प्रकाशित करने का मन बना लिया था. इसके लिए उन्होंने पेरियार से चर्चा की और उन्‍हें सहमति मिल गई. 1968 में ही ललई सिंह ने ‘द रामायना: ए ट्रू रीडिंग’ का हिन्दी अनुवाद कराकर ‘सच्ची रामायण’ नाम से प्रकाशित कराया, जिसको लेकर काफी बवाल हुआ और हिंदूवादियों ने विरोध जताया और सरकार ने किताब को जब्‍त कर लिया. मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया.

यूपी सरकार की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि यह किताब विशाल हिंदू जनसंख्या की पवित्र भावनाओं पर प्रहार करती है और लेखक ने खुली भाषा में राम और सीता एवं जनक जैसे दैवी चरित्रों पर कलंक मढ़ा है. इसलिए इस किताब पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है. इस पर ललई सिंह यादव के वकील बनवारी लाल यादव ने ‘सच्ची रामायण’ के पक्ष में जबर्दस्त पैरवी की. 19 जनवरी 1971 को हाईकोर्ट से वह केस जीते. कोर्ट ने किताब जब्ती का आदेश निरस्त कर दिया और सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी जब्त पुस्तकें वापस करे. साथ ही ललई सिंह को 300 रुपए मुकदमे का खर्च दिया जाए.

बाद में यूपी सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट अपील में गई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में ‘उत्तर प्रदेश बनाम ललई सिंह यादव’ नामक फ़ैसला 16 सितम्बर 1976 को आया, जोकि पुस्तक के प्रकाशक के पक्ष में रहा. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही माना और राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया.

सच्ची रामायण के पक्ष में मुकदमा जीतने के बाद वह दलितों (Dalit) के नायक बन गए. उन्‍होंने वर्ष 1967 में हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया और अपने नाम से यादव शब्द हटा दिया. इसके पीछे उनकी गहरी जाति विरोधी चेतना थी, जिसका मकसद जाति विहीन समाज के लिए संघर्ष था.

उन्‍होंने बौद्ध धर्मानुयायी बहुजन राजा अशोक के आदर्श को ध्‍यान में रखते हुए ‘अशोक पुस्तकालय’ नाम से प्रकाशन संस्था कायम की और अपना प्रिन्टिंग प्रेस लगाई, जिसका नाम ‘सस्ता प्रेस’ रखा. उन्होंने पांच नाटक लिखे, अंगुलीमाल नाटक, शम्बूक वध, सन्त माया बलिदान, एकलव्य और नाग यज्ञ नाटक. गद्य में भी उन्होंने तीन किताबें लिखीं, शोषितों पर धार्मिक डकैती, शोषितों पर राजनीतिक डकैती एवं सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो?

ललई सिंह के साहित्य ने बहुजनों में ब्राह्मणवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना पैदा की और उनमें श्रमण संस्कृति और वैचारिकी का नवजागरण किया. एक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और प्रकाशक के रूप में उन्होंने अपना पूरा जीवन ब्राह्मणवाद के खात्मे और बहुजनों की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया. 7 फरवरी 1993 को उन्होंने अंतिम विदा ली.

dalitawaaz

Dalit Awaaz is the Voice against Atrocities on Dalit & Underprivileged | Committed to bring justice to them | Email: dalitawaaz86@gmail.com | Contact: 8376890188

Share
Published by
dalitawaaz

Recent Posts

रोहित वेमुला अधिनियम पारित करेंगे, अगर हम सरकार में आएंगे, जानें किस पार्टी ने किया ये वादा

Rohith Vemula Closure Report: कांग्रेस ने कहा कि जैसा कि तेलंगाना पुलिस ने स्पष्ट किया…

1 year ago

Dr. BR Ambedkar on Ideal Society : एक आदर्श समाज कैसा होना चाहिए? डॉ. बीआर आंबेडकर के नजरिये से समझिये

लोकतंत्र केवल सरकार का एक रूप नहीं है. यह मुख्य रूप से संबद्ध जीवन, संयुक्त…

1 year ago

Dr. BR Ambedkar Inspiring Quotes on Education : शिक्षा पर डॉ. बीआर आंबेडकर की कही गई प्रेरक बातें

Dr. BR Ambedkar Inspiring Quotes on Education : शिक्षा पर बाबा साहब डॉ. बीआर आंबेडकर…

2 years ago

This website uses cookies.