उनसे कह दो कि डरे नहीं है हम… हां, हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम
उनसे कह दो कि डरे नहीं है हम, हाँ, हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम। -सूरज कुमार बौद्ध (Suraj Kumar Bauddh)
उनसे कह दो कि डरे नहीं है हम, हाँ, हारे हैं जरूर मगर मरे नहीं हैं हम। -सूरज कुमार बौद्ध (Suraj Kumar Bauddh)
रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ (Ramashankar Yadav Vidrohi) प्रगतिशील परंपरा के हिंदी के लोकप्रिय जनकवि रहे. उनका एकमात्र प्रकाशित संग्रह नई खेती है.
मैं जानता हूं मेरा दर्द तुम्हारे लिए चींटी जैसा और तुम्हारा अपना दर्द पहाड़ जैसा -ओमप्रकाश वाल्मीकि (Om Prakash Valmiki)
Rohan Kajaniya Achuta : लेखक रोहन कजानिया ‘अछूता’ को साहित्य से विशेष रूप से हिंदी दलित साहित्य (Hindi Dalit Sahitya) से प्रेम है और अपनी पटकथाओं (फिल्मों/साहित्य) और कविताओं (हमारा समाज) पर काम कर रहे हैं.