कोरोना महामारी (Covid 19) और लॉकडाउन (Lockdown) के बीच आरक्षण (Reservation) का मुद्दा गरमाता दिख रहा है… खासकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Apex Court) द्वारा एक मामले में आरक्षण व्यवस्था (Reservation System) को लेकर की गई टिप्पणी को लेकर. बिहार (Bihar) में आरक्षण के मुद्दे पर दलित विधायक लामबंद होते दिख रहे हैं.
बीते शुक्रवार को बिहार विधानसभा में भी कुछ ऐसा ही नज़ारा दिखाई दिया. दरअसल, बिहार विधानसभा की लॉबी में शुक्रवार को बिहार की नीतीश सरकार के उद्योग मंत्री व जेडीयू के विधायक श्याम रजक (Shyam Rajak) की पहल पर राज्य के करीब 22 दलित विधायकों की सर्वदलीय बैठक बुलाई गई. यानि इस मीटिंग में सभी दलों के दलित विधायक (Dalit MLA) मौजूद थे. इस ऑल पार्टी मीटिंग में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के हालिया फैसले पर सवाल उठाए गए. साथ ही केंद्र सरकार से तुरंत दखल देने की अपील भी की गई.
केवल यही नहीं, विधानसभा लॉबी में बैठक करने के बाद सभी विधायकों ने विधानसभा परिसर में प्रदर्शन भी किया. इसके बाद श्याम रजक के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, ललन पासवान एवं रामप्रीत पासवान समेत 22 विधायकों ने एससी/एसटी आरक्षण (SC/ST Reservation) को लेकर प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को पत्र भी भेजा.
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इस 4 पन्नों के पत्र में विधायकों की तरफ से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) भारतीय संविधान का संरक्षक और अंतिम व्याख्याकार है, लेकिन दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि 2017 से बारी-बारी से शीर्ष अदालत के फैसले सुप्रीम कोर्ट SC/ST वर्ग को प्राप्त प्रतिनिधि एवं प्रमोशन के विरोध में आए हैं.
साथ ही सभी विधायकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से पूर्व से जारी आरक्षण और प्रमोशन में रिजर्वेशन को फिर से लागू करने और न्यायपालिका में प्रतिनिधि आरक्षण का प्रावधान सुनिश्चित करने के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन करने की अधिसूचना ऑनलाइन लाने और कानून बनाने की मांग की.
दरअसल, विधायकों का कहना है कि कोरोना संकट की वजह से लॉकडाउन लागू है और संसद सत्र के बिना पदोन्नति में आरक्षण को अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता. इसलिए प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार की ओर से तत्काल एक बयान जारी किया जाए, ताकि हमें विश्वास हो सके कि आने वाले संसद सत्र में इसका हल निकलेगा.
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गौरतलब है कि हाल में ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को लेकर ताजा टिप्पणी की थी. पीठ ने टिप्पणी में कहा था कि सरकार एससी-एसटी आरक्षण (SC/ST Reservation) में क्रीमी लेयर सिद्धांत लागू करे.
खास बात यह है कि वर्ष 2018 में संविधान पीठ द्वारा जरनैल सिंह केस में की गईं टिप्पणियां अभी फैसले से हटी भी नहीं हैं कि अब दूसरी संविधान पीठ ने यही टिप्पणियां फिर से कर दी हैं. लिहाजा, इससे सरकार के लिए एक बार फिर से मुश्किल खड़ी हो गई है.
क्या थीं सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
एससी-एसटी कैटेगरी के जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर धनी हो चुके हैं, उन्हें शाश्वत रूप से रिजवेशन यानि आरक्षण देना जारी नहीं रखा जा सकता. कल्याण के उपायों की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि बदलते समाज में इसका फायदा सभी को मिल सके.
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इसके बाद कोरोना वायरस महामारी (Covid 19) के संकट के बीच आरक्षण (Reservation) से छेड़छाड़ की कोशिश की बात कहने वाले बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र लिखा था. श्याम रजक अखिल भारतीय धोबी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं और नीतीश कुमार सरकार में उद्योग मंत्री.
बीते सोमवार को पीएम मोदी को खत लिख उन्होंने फिर अनुरोध किया था कि वह आरक्षण की व्यवस्था को अक्षुण्ण रखने के मसले पर आश्वासन से संबंधित बयान दें. उन्होंने इसके पहले भी पीएम मोदी को खत लिख कहा था कि कुछ संस्थाएं देश में आरक्षण के साथ छेड़छाड़ की कोशिश कर रही हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, उद्योग मंत्री श्याम रजक ने सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी को दोबारा लिखे पत्र में कहा कि संसद सत्र नहीं चलने की वजह से अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) एवं अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के आरक्षण (SC/ST Reservation) विषय को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करना संभव नहीं. प्रधानमंत्री को पहले भी पत्र लिखकर आग्रह गया किया था कि इस बारे में एक वक्तव्य देकर वह इस वर्ग के लोगों के बीच फैली निराशा को दूर करें. प्रधानमंत्री के वक्तव्य से लोग आश्वस्त होंगे.
श्याक रजक ने कहा कि कोरोना महामारी (Corona Virus) से उत्पन्न हालातों में यह सवाल उठाना उचित नहीं लग रहा, लेकिन आरक्षण के अस्तित्व पर उठा यह सवाल भविष्य में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों पर कोरोना वायरस से भी बड़ा संकट ला देगा.