धनंजय मुंडे ने ट्वीट कर कहा, राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है कि छात्रों को शैक्षणिक और आर्थिक रूप से नुकसान न पहुंचे, क्योंकि कोरोना वायरस के कारण विकट स्थिति है और इसके एक हिस्से के रूप में हमने तुरंत इस छात्रवृत्ति की पेशकश की है. यह हमारा वचन है कि कोई भी छात्र छात्रवृत्ति से वंचित नहीं रहेगा.
उन्होंने आगे लिखा, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने राज्य में एससी छात्रों के लिए मैट्रिक बाद की छात्रवृत्ति और मुक्त छात्रवृत्ति के लिए स्वीकृति प्रदान की है. 1 लाख 97 हजार 16 लाभार्थी छात्रों को 6 दिनों में उनकी सही छात्रवृत्ति मिलेगी.
कोरोना विषाणूमुळे उदभवलेल्या भीषण परिस्थितीत विद्यार्थ्यांचे शैक्षणिक व आर्थिक नुकसान होऊ नये यासाठी राज्यशासन प्रयत्नशील असून त्याचाच एक भाग म्हणून आम्ही तातडीने ही शिष्यवृत्ती देऊ केली आहे. एकही विद्यार्थी शिष्यवृत्तीपासून वंचित राहणार नाही हा आमचा शब्द आहे.
रिपोर्ट के अनुसार, अजित पवार ने स्वीकृति के तहत वित्त विभाग के माध्यम से 462.69 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति निधि समाज कल्याण आयुक्तालय को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया है.
इसके तहत 1 लाख 69 हजार 171 छात्रों के लिए कुल 347.69 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए 27 हजार 845 फ्रीशिप छात्रों के लिए 114 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति तुरंत वित्त विभाग द्वारा आयुक्त, समाज कल्याण विभाग, महाराष्ट्र के खाते में स्थानांतरित कर दी गई है.
पूरी दुनिया बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) को भारत के संविधान निर्माता के रूप में जानती है. आधुनिक भारत की नींव रखने वालों में से एक बाबा साहब के जीवन और समय को जानने की दिलचस्पी हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी है, लेकिन अभी बहुत सी बातें हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. ऐसी ही एक कहानी उनके सरनेम को लेकर भी है, जिसके बारे में ज्यादा लोगों को नहीं पता है. यह कहानी बहुत ही दिलचस्प है.
‘जन्म नाम था भीम, लेकिन स्कूल में लिखवाया गया भीवा’
धनंजय कीर की लिखी जीवनी को बाबासाहब पर लिखी सबसे प्रमाणिक और मशहूर जीवनी के तौर पर माना जाता है. इस जीवनी के मुताबिक बाबा साहब का जन्म नाम भीम था, लेकिन उनको घर में भीवा भी बुलाते थे और आगे के जीवन में विश्वविद्यालयी शिक्षा समाप्त होने तक भीवराव ही नाम रह गया. (डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जीवन चरित, पापुलर प्रकाशन, पृष्ठ 11)
सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका गेल ओमवेट द्वारा लिखी बाबा साहब की जीवनी ‘अंबेडकर प्रबुद्ध भारत की ओर’ में लिखा है, ‘भीम चोहदवां बालक (अपने माता-पिता का) था, जिसे भीवा भी पुकारा जाता था’ (पृष्ठ 3).
इसी जीवनी में वह आगे लिखती हैं, ‘बाबा साहब का परिवार 1894 में सतारा आकर रहने लगा था, जहां उनके पिता राम जी को लोक निर्माण विभाग में स्टोरकीपर के पद पर नियुक्त किया गया. वहीं उनके सबसे छोटे बेटे (बाबा साहब) ने एक कैंप स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा शुरु की और वर्ष 1900 में अंग्रेजी माध्यम के एक सरकारी हाई स्कूल में पहली कक्षा में दाखिला पाया. इस स्कूल में उनका भीवा राव अंबेडकर के रूप में दाखिला हुआ. उनके नाम करण के पीछे भी एक कहानी है.’ (पृष्ठ-5)
‘बाबा साहब के पिता ने नहीं लगाया जाति दर्शाने वाला सरनेम’
दरअसल डॉ. आंबेडकर के परिवार का नाम सकपाल था. पिता रामजी मालोजी सकपाल निम्न जाति दर्शाने वाले इस उपनाम का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने यह तय किया कि वह अपने उपनाम के तौर पर अपने गांव के नाम का इस्तेमाल करेंगे.
गेल ओमवट की किताब में इस किस्से का जिक्र करते हुए कहा गया है, ‘महाराष्ट्र में यह एक आम प्रथा है जहां ‘कर’ से समाप्त होने वाले सभी नाम स्थान सूचक होते हैं. उनके गांव का नाम अंबावाडे था और इस प्रकार उनका नाम अंबावाडेकर होना चाहिए था.’
ब्राह्मण शिक्षक, जिसकी वजह से मिला बाबा साहब को उपनाम अंबेडकर
गेल ओमवेट की किताब के मुताबिक कैंप स्कूल में बाबा साहब का एक शिक्षक अंबेडकर था और तेज बालक भीवा उसका प्रिया शिष्य था. यह शिक्षक भीवा को रोज भोजन कराता था ताकि उसे दोपहर के भोजन के लिए दूर अपने घर आना-जाना न पड़े. किताब के अनुसार उसी शिक्षक के सम्मान में बालक का नाम अंबेडकर पड़ गया.
गेल ओमवेट लिखती हैं, ‘बाद के वर्षों में जब अंबेडकर गोलमेज सम्मेलन के शिष्टमंडल के सदस्य बनाए गए, उस मौके पर उक्त शिक्षक महोदय ने अंबेडकर को एक भावपूर्ण पत्र लिखा. 1927 में जब अंबेडकर की उस शिक्षक से भेंट हुई तो उन्हें गुरू के रूप में सम्मानित किया.’ (पृष्ठ 4)
वहीं धनंजय कीर की किताब में इस किस्से का जिक्र थोड़े अलग ढंग से आया है. वह लिखते हैं, ‘आंबेडकर गुरुजी ने भीम के लिए और एक संस्मरणीय कार्य किया भीम का कुलनाम अंबावेडकर था उन्हें ऐसा लगा यह कुल नाम ठीक नहीं अतः एक दिन आंबेडकर गुरुजी ने भीम से कहा कि वह सरल सुलभ आंबेडकर नाम धारण करे. तुरंत ही स्कूल के कागजात में उन्होंने वे नाम दर्ज कर लिया.’ (पृष्ठ -18)
कीर भी अपनी किताब में गुरु-शिष्य के बीच प्रेमपूर्ण संबंधों का जिक्र करते हैं. वह भी गोलमेज सम्मेलन के दौरान गुरु के द्वारा अपने शिष्य को लिखे गए पत्र के बारे में भी बताते हैं. कीर बाबा साहब की अपने गुरू के साथ मुंबई में हुई एक मुलाकात का भी जिक्र करते हैं जहां बाबासाहब ने अपने गुरू को पोशाक देकर सम्मानित किया था. (पृष्ठ 18)
कॉलेज में जाकर भीवा से भीम राम आंबेडकर बन गए बाबा साहब
बाबा साहब का भीवा नाम उनके साथ हाई स्कूल तक चला. हाई स्कूल पास करने के बाद उन्होंने बंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला ले लिया. गेल ओमवेट की किताब के मुताबिक, ‘वहां सन 1913 में अंग्रेजी और फारसी में बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की’. आगे वह लिखती हैं, ‘इसी दौरान बचपन से चला आ रहा उनका नाम बदल गया और कॉलेज की वार्षिक परीक्षा में उनका भीम नाम दर्ज किया गया.’
लेखक बलविंदर कौर नन्दनी दलित साहित्य पर शोधकर्ता (दिल्ली विश्वविद्यालय) व स्वतंत्र पत्रकार हैं…