नई दिल्ली. अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है. सीता रसोई से लेकर मंदिर के आंगन में किस तरह से नक्काशी की जाएगी ये तय हो गया है. राम मंदिर निर्माण के इतिहास में एक बात याद रखी जाएगी वो ये कि इसकी नींव की पहली ईंट किसी पंडित या सवर्ण जाति के व्यक्ति ने नहीं बल्कि एक दलित ने रखी थी. उस दलित व्यक्ति का नाम है कामेश्वर चौपाल.
बिहार के मैथिली क्षेत्र में जन्मे कामेश्वर चौपाल शुरुआत से ही राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे और फिर विश्व हिंदू परिषद के बिहार प्रदेश के संगठन महामंत्री बने. कामेश्वर चौपाल का नाम तब पहली बार सुर्ख़ियों में आया, जब 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया था.
हजारों साधु-संत, लेकिन पहली शिला कामेश्वर ने रखी…
देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हज़ारों साधु-संतों और लाखों कारससेवक इसमें जुटे थे और उस शिलान्यास कार्यक्रम में राम मंदिर निर्माण के लिए पहली शिला कामेश्वर चौपाल ने ही रखी थी.
कामेश्वर चौपाल ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा था, वो 1984 में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े. उसी साल राम मंदिर निर्माण के लिए वीएचपी की तरफ़ से दिल्ली के विज्ञान भवन में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें सैकड़ों संगठनों के प्रतिनिधि और धर्मगुरु शामिल हुए थे. चौपाल भी उस सम्मेलन में बिहार की तरफ़ से भाग लेने पहुंचे थे.
वो कहते हैं, ” उस सम्मेलन में ये फ़ैसला लिया गया कि राम मंदिर निर्माण के लिए एक जनजागरण अभियान चलाया जाए. एक कमिटी बनी जिसके अध्यक्ष गोरक्षापीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत के. अवैद्य नाथ बने. जनजागरण की शुरुआत मिथिलांचल से हुई. इसका कारण था कि पहले लोगों के मन में यह बात आयी कि सीता राम की शक्ति हैं इसलिए उनकी जन्मभूमि जनकपुर से रथ निकाला जाए.”
“राम जन्मभूमि संघर्ष समिति पूरे देश में जनजागरण कार्यक्रम आयोजित करती थी. पहला संघर्ष था राम जानकी यात्रा. उस यात्रा का मैं प्रभारी था. और उसी यात्रा का परिणाम हुआ कि 1986 में एक फ़रवरी को राम जन्मभूमि का ताला खुला. हालांकि ताला कोर्ट के आदेश पर खुला था पर इसमें हमारी यात्रा का बहुत प्रभाव पड़ा था.