भारतीय सेना (Indian Army) में समय-समय पर चमार रेजिमेंट (Chamar Regiment) फिर से बनाए जाने की उठी है और इसने एक बार फिर जोर पकड़ा है. इस बार भी यह मांग इतनी जोर शोर से उठी है कि सोशल मीडिया पर यह मद्दा बकायदा टॉप ट्रेंड कर रहा है. सोमवार को बाकायदा ट्विटर पर #चमार_रेजिमेंट_हक़_है_हमारा ट्रेंड कर रहा था, जिसमें स्पष्ट रूप से सेना में चमार रेजिमेंट स्थापित किए जाने की मांग रखी गई. ज्यादातर लोग इसमें चर्चा में कहते देखे गए कि जब सेना में जातपात के नाम पर रेजिमेंट हो सकती हैं तो चमार रेजिमेंट क्यों नहीं?
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल इस चर्चा में लिखते हैं, ‘चमार रेजिमेंट को 1946 में भंग कर दिया गया. उसके काफी सैनिक नेताजी सुभाष बोस की अपील पर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे. चमार रेजिमेंट को देशभक्त होने की सजा मिली. अगर जाति या समुदाय के नाम पर एक भी रेजिमेंट चल सकती है तो चमार रेजिमेंट बननी चाहिए.’
चमार रेजिमेंट को 1946 में भंग कर दिया गया. उसके काफी सैनिक नेताजी सुभाष बोस की अपील पर आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे.
चमार रेजिमेंट को देशभक्त होने की सजा मिली. अगर जाति या समुदाय के नाम पर एक भी रेजिमेंट चल सकती है तो चमार रेजिमेंट बननी चाहिए.#चमार_रेजिमेंट_हक़_है_हमारा
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) June 8, 2020
खास बात यह है कि चमार रेजिमेंट को दोबारा बहाल किए जाने की मांग कोई नई नहीं है. इससे पहले भी यह मांग जोरशोर से उठी थी. पिछले साल चंद्रशेखर आजाद ने भी चमार रेजिमेंट को फिर से बहाल करने की मांग की थी. तो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी चमार रेजिमेंट को बहाल करने की मांग की.
तो आखिर ये चमार रेजिमेंट और इसका इतिहास क्या है, इसे समझना हमारे लिए बेहद जरूरी है.
-दरअसल, चमार रेजिमेंट मेरठ छावनी में 1 मार्च 1943 को स्थापित की गई.
-इससे पहले एक साल तक यह सेकेंड पंजाब रेजिमेंट की 27वीं बटालियन के रूप में ट्रायल के तौर पर थी, जिसमें चमार जाति के जवान ही भर्ती किए गए थे. इन जवानों के हथियारों की ट्रेनिंग और शारीरिक क्षमताओं में खुद को साबित करने के बाद ही विधिवत तौर पर स्वतंत्र तौर से चमार रेजिमेंट की स्थापना की गई.
-चमार रेजिमेंट की स्थापना तत्कालिक ब्रिटिश सरकार की उस नीति के तहत की गई थी कि जिन समुदायों की सेना में कभी हिस्सेदारी नहीं रही, उन्हें भी सेना में शामिल किया जाए.
-रेजिमेंट के गठन के कुछ ही दिनों में दूसरा विश्वयुद्ध तेज हो गया. विश्वयुद्ध का असर एशिया तक पहुंच गया और चमार रेजिमेंट को इस वैश्चिक जंग में उतार दिया गया.
-उस समय ब्रिटिश इंडियन आर्मी में दलितों की तीन रेजिमेंट थीं- महार रेजिमेंट, मजहबी और रामदसिया रेजिमेंट तथा चमार रेजिमेंट, जिन सभी को दूसरे विश्व युद्ध में उतारा गया.
-चमार रेजिमेंट की पहली बटालियन को सबसे पहले उत्तर पूर्वी राज्य गुवाहाटी भेजा गया था. इसके बाद बटालियन को कोहिमा, इंफाल और बर्मा (वर्तमान में म्यांमार) की लड़ाइयों में तैनाती मिली.
-सेंकेड वर्ल्ड वॉर में इस रजिमेंट के कुल 42 जवान शहीद हुए, जिनके नाम दिल्ली, इंफाल, कोहिमा, रंगून आदि के युद्ध स्मारकों में दर्ज हैं.
-केवल यही नहीं, चमार रेजिमेंट के 7 जवानों को कई वीरता पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया. इस रेजिमेंट की फर्स्ट बटालियन को बैटल ऑनर ऑफ कोहिमा अवार्ड भी दिया गया.
-इसे आजाद हिंद फौज से लड़ने के लिए सिंगापुर भेजा गया था, लेकिन चमार रेजिमेंड ने आजाद हिंद फौज के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होकर इसके जवान आईएनए में शामिल हुए थे.
-हालांकि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद महार रेजिमेंट को तो बनाए रखा गया, लेकिन मजहबी एंड रामदसिया रेजिमेंट का नाम बदलकर सिख लाइट इनफेंट्री कर दिया गया. लेकिन चमार रेजिमेंट को 1946 में भंग कर दिया गया.
– इस फैसले का विरोध भी हुआ और इसे बहाल करने को लेकर आंदोलन भी हुआ, जिसका नेतृत्व रेजिमेंटल दफेदार जोगीराम जी के नेतृत्व में हुआ और इसमें 46 जवान शामिल हुए.
-इस आंदोलन करने के कारण उन्हें जेल की सजा भी हुई.
-इस रेजिमेंट के एक सैनिक चुन्नीलाल जी अब तक जीवित हैं. हालांकि पिछले कुछ साल में रेजिमेंटल दफादार जोगीराम जी और दफेदार धर्मसिंह जी की मृत्यु हो गई है.
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