हैदराबाद : भारत राष्ट्र समिति (BRS) जाति-आधारित जनगणना (Caste based Census) की मांग का समर्थन करती रही है और तेलंगाना (Telangana) में पार्टी पर पिछड़ा वर्ग (Backward Class) का दबाव हो सकता है कि वह बिहार की तर्ज पर यहां भी सर्वे शुरू करे. पिछड़ा वर्गों का समूह मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR) की सरकार से राज्य में जातिगत जनगणना (Jatigat Janganana) कराने का आदेश जारी करने की मांग कर रहा है क्योंकि केंद्र में भाजपा (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार राष्ट्रीय स्तर पर इस काम को करने से इनकार कर रही है. केसीआर ने तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए उसे बीआरएस में बदल दिया है. बीसी (पिछड़ा वर्ग) समूहों को लगता है कि तेलंगाना में जाति जनगणना की पहल करके पार्टी पूरे देश में पिछड़ा वर्ग के लोगों को एक सही संदेश भेज सकती है.
अगर बीआरएस तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग की जनगणना करने का आदेश लेकर आता है तो इन समूहों ने अन्य राज्यों में भी उसे मदद देने की पेशकश की है.
बीसी संक्षेमा संघम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जाजुला श्रीनिवास गौड़ ने कहा, अगर तेलंगाना में जाति जनगणना (Jati Janganana) के लिए एक जीओ (सरकारी आदेश) जारी किया जाता है, तो हम उन राज्यों में बीसी और ओबीसी को जागरूक करने के लिए तैयार हैं जहां बीआरएस चुनाव लड़ना चाहती है.
उनका मानना है कि जातिगत जनगणना (Caste based Census) कराकर केसीआर राष्ट्रीय छवि बना सकते हैं. उन्होंने कहा, वह दूसरे राज्यों में बीआरएस का विस्तार करने के लिए तेलंगाना मॉडल को पूरे देश के सामने पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. जातिगत जनगणना इस तेलंगाना मॉडल को और मजबूत करेगी.
Caste based Census
हालांकि, बीआरएस ने अभी तक इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. सत्ताधारी पार्टी इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इस मुद्दे से किनारा कर सकती है. पार्टी के कुछ नेताओं ने पहले ही कहा है कि जनगणना कराने की शक्ति केंद्र के पास है.
तेलंगाना राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष वकुलबरनम कृष्ण मोहन राव ने केंद्र से इस विषय को समवर्ती सूची में स्थानांतरित करने की मांग की है. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार पिछड़े वर्ग की जातिगत जनगणना कराने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन केंद्र को इसकी सुविधा देनी होगी.
अक्टूबर 2021 में, तेलंगाना विधानसभा ने 2021 के लिए सामान्य जनगणना के साथ पिछड़े वर्ग की जातिवार जनगणना (Caste based Census) की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था.
केसीआर ने विधानसभा को बताया था कि पिछड़ा वर्ग तेलंगाना की आबादी का लगभग 50 प्रतिशत है. उन्होंने बताया कि देश में विभिन्न राजनीतिक दलों और राज्य विधानसभाओं ने जातिगत जनगणना के प्रस्ताव पारित किए थे.
प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था: समाज के गरीब वर्गों के उत्थान के मद्देनजर, गरीब से गरीब लोगों को लाभान्वित करने के लिए विभिन्न कल्याणकारी उपाय करने के लिए सटीक आंकड़े बनाए रखना आवश्यक है.
प्रस्ताव में कहा गया है, ..दूसरी तेलंगाना विधान सभा एतदद्वारा.. केंद्र सरकार से आग्रह करती है कि 2021 के लिए सामान्य जनगणना करते समय पिछड़े वर्गों के नागरिकों की जातिवार जनगणना की जाए.
केसीआर का तर्क है कि सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों की पहचान करने और उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण बढ़ाने के लिए जनगणना के अनुपात में जातिगत जनगणना आवश्यक है.
उन्होंने देश में जाति आधारित जनगणना करने में असमर्थता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार की आलोचना की. उन्होंने जनसंख्या और अनुसूचित जाति (एससी) के लिए बढ़ाए गए आरक्षण को बेमेल बताते हुए कहा कि समुदायों की आबादी में वृद्धि के कारण अनुसूचित जाति समुदायों के लिए मौजूदा आरक्षण को 15 प्रतिशत से बढ़ाने की आवश्यकता थी.
उन्होंने बताया कि पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति (एससी) के लोग भी जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘अनुसूचित जाति की आबादी बहुत पहले 15 फीसदी तय की गई थी, लेकिन पूरे विश्वास के साथ मैं कह सकता हूं कि यह अब 17 फीसदी को पार कर गई है. कुछ राज्यों में यह 19 फीसदी को भी पार कर गई है.’
केसीआर ने कहा था कि तेलंगाना में अनुसूचित जाति की आबादी राज्य की कुल आबादी का 17 प्रतिशत है, जिसमें राज्य भर में लगभग 18 लाख दलित परिवार रहते हैं.
राज्य सरकार द्वारा 2014 में आयोजित समग्र कुटुंब सर्वेक्षण या व्यापक घरेलू सर्वेक्षण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, लेकिन मनचेरियल जैसे कुछ जिलों में, अनुसूचित जाति की आबादी 26 प्रतिशत है. जयशंकर भूपालपल्ली जिले में यह 22 प्रतिशत है, जनगांव, खम्मम, रंगारेड्डी और विकाराबाद में 21 प्रतिशत और करीमनगर में 20 प्रतिशत है. हैदराबाद में लगभग 11 प्रतिशत के साथ सबसे कम अनुसूचित जाति की आबादी है.
बीआरएस नेता ने देश में जनगणना की कवायद नहीं कराना मोदी सरकार गलती बताई. उन्होंने कहा कि जनगणना की प्रक्रिया बहुत पहले 1871 में शुरू हुई थी और यह 2011 तक निर्बाध रूप से जारी रही.
उन्होंने बताया कि दो विश्व युद्धों के दौरान भी यह बंद नहीं हुआ. केसीआर ने कहा कि जनगणना से ही सरकार को पता चलता है कि देश में क्या स्थिति है. उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार जनगणना इसलिए नहीं करा रही क्योंकि वह लोगों को तथ्य बताने से डरती है.
केसीआर ने तर्क दिया कि पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना उनके कल्याण के लिए उपयुक्त नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करने में मदद करेगी. उन्होंने कहा, केंद्र कह रहा है कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है. यह एक संवेदनशील मुद्दा क्यों है. हमारे देश में जाति व्यवस्था है. हमें इसके लिए क्यों शर्मिदा होना चाहिए? क्या सरकारें जाति प्रमाणपत्र जारी नहीं कर रही हैं.
कांग्रेस पार्टी आक्रामक तरीके से जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठा रही है जिससे केसीआर पर भी इसे लेकर रणनीति तय करने का दबाव हो सकता है.