देश के सबसे बड़े/स्पेशलिस्ट अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स (AIIMS) में एक वरिष्ठ महिला रेजिडेंट डॉक्टर के जातिगत उत्पीड़न का मामला सामने आया है. गंभीर बात यह है कि महिला डॉक्टर ने खुदकुशी की भी कोशिश की, लेकिन एम्स प्रशासन इस ओर कार्रवाई करने की बजाय आंखें मूंदे हुए है. एम्स में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इससे पहले भी वहां जातिगत भेदभाव को लेकर ऐसे कई विवादित मामले सामने आए हैं.
बीते साल जनवरी महीने की ही बात करें तो एम्स में कार्यरत वरिष्ठ डॉक्टरों से एक फॉर्म भरकर जमा करने को कहा गया था, जिसमें अन्य जानकारियों के साथ उनसे धर्म और जाति का विवरण भी मांगा गया था. इसको लेकर भी अच्छा खासा विवाद हुआ था.
द वायर में छपी रिपोर्ट के अनुसार, एम्स में एक पेज के इस फॉर्म को सभी डॉक्टरों का डेटाबेस तैयार करने के उद्देश्य से बीते सप्ताह वितरित किया गया था. नाम और उम्र के अलावा उनसे जो अतिरिक्त जानकारियां मांगी गई, वे उनके वेतन और नियुक्तियों से संबंधित थीं.
रिपोर्ट के मुताबिक, एम्स के निदेशक डॉ. रनदीप गुलेरिया ने इस फॉर्म के बारे में कोई जानकारी न होने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि, ‘एम्स में कभी भी डॉक्टरों से उनके धर्म और जाति के बारे में नहीं पूछा गया. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मैंने वह फॉर्म नहीं देखा है और अगर ऐसा कोई फॉर्म वितरित हुआ भी है तो इसका कोई मतलब नहीं. एम्स में हम किसी भी डॉक्टर की धर्म और जाति के बारे में नहीं सोचते और इनके बारे में पूछना उचित नहीं है.’ हालांकि डॉक्टरों से संबंधित प्रशासनिक काम संभालने वाली एम्स फैकल्टी सेल ने दावा किया कि ये सवाल गलती से जोड़ दिया गया था.
सेल में प्रशासनिक कार्यों के प्रमुख डॉक्टर संजय आर्या ने कहा था, ‘हमने वरिष्ठ डॉक्टरों का डेटाबेस तैयार करने के उद्देश्य से फॉर्म भेजे थे. उनकी जाति और धर्म के बारे में जानकारी की कोई जरूरत नहीं थी. फॉर्म में ये सवाल गलती से जोड़ दिए गए. इसे जल्द ही संशोधित कर दूंगा.’
वहीं, नाम न बताने की शर्त पर फॉर्म पाने वाले एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा था, ‘यह चौंकाने वाला है. आखिर वे अस्पताल में काम करने वाले किसी भी डॉक्टर की धर्म और जाति के बारे में बात क्यों करना चाहते हैं?’
इस तरह यह मालूम पड़ता है कि एम्स में इस तरह की घटनाएं कोई नई नहीं हैं. हाल की घटना ने भी साबित कर दिया है कि एम्स में जातिगत भेदभाव कहीं न कहीं अपनी जड़ें जमाए हुए है, क्योंकि अस्पताल की एक सीनियर डॉक्टर से फैकल्टी मेंबर द्वारा यह कहना जाना कि तू एससी है. अपना मुंह बंद कर और काली बिल्ली की तरह मेरा रास्ता मत काट…. इस बात को किसी न किसी रूप में स्पष्ट करता है.