तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संविधान पीठ द्वारा आरक्षण (Reservation) को लेकर हालिया दिए गए फैसले पर समीक्षा याचिका दायर करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संविधन पीठ ने राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों में शिक्षक के पदों में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण की अनुमति देने वाले सरकार के आदेश को आदेश को पलट दिया था.
सरकार इस संबंध में शीघ्र ही निर्वाचित प्रतिनिधियों और जनजातीय अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों से परामर्श करेगी.
आदिवासी कल्याण मंत्री सत्यवती राठौड़ ने शुक्रवार को अपने कार्यालय में संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक की और घोषणा की कि सरकार आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सभी प्रयास करेगी. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने पहले ही प्रस्तावित समीक्षा याचिका पर एक रिपोर्ट तैयार करनी शुरू कर दी है और याचिका दायर करने से पहले सभी हितधारकों की राय प्राप्त करेगी.
मंत्री ने आगे कहा कि राज्य के आदिवासियों को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने पहले ही आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सभी कानूनी विकल्पों का लाभ उठाने का वादा किया था. हमने केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा से भी इस संबंध में आवश्यक सहयोग के लिए अनुरोध किया है. इसके अलावा राज्य सरकार आंध्र प्रदेश सरकार के साथ मिलकर समीक्षा याचिका दायर करेगी, क्योंकि यह सरकारी आदेश अविभाजित आंध्र प्रदेश में जारी किया गया था यानि जब आंध्र और तेलंगाना में क्षेत्र विभाजन नहीं हुआ था.
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दरअसल, साल 2000 के जनवरी महीने में पूर्ववर्ती आंध्र प्रदेश के राज्यपाल द्वारा जारी किए गए एक आदेश के तहत आंध्र प्रदेश में अनुसूचित क्षेत्रों के स्कूलों में टीचर की नियुक्ति में एसटी उम्मीदरवार को 100 फीसदी आरक्षण दिया गया था. इसका मतलब है कि इस क्षेत्रों में सिर्फ अनुसूचित जनजाति वर्ग के टीचर की ही नियुक्ति होनी थी.
बीते अप्रैल माह में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा जारी आदेश को असंवैधानिक ठहराया था. पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था, ‘अब आरक्षित वर्ग के भीतर चिंताएं हैं. इस समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर संपन्न और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उच्च श्रेणी के वर्ग हैं. अनुसूचित जातियों/जनजातियों में से कुछ के सामाजिक उत्थान से वंचित व्यक्तियों द्वारा आवाज उठाई गई है, लेकिन वे अभी भी जरूरतमंदों तक लाभ नहीं पहुंचने देते हैं. इस प्रकार, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षित वर्गों के भीतर पात्रता को लेकर संघर्ष चल रहा है.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे समय-समय पर इसकी समीक्षा करें ताकि इस वर्ग के जरूरतमंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिले और संपन्न या सक्षम लोग इसे न हड़पें.
जस्टिस अरुण मिश्रा, इंदिरा बनर्जी, विनीत सरन, एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के साथ सहमति व्यक्त करते हुए कहा था कि आरक्षण के हकदार लोगों की सूचियों को समय-समय पर संशोधित किया जाना चाहिए.