देश के सबसे बड़े/स्पेशलिस्ट अस्पताल कहे जाने वाले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स (AIIMS) में एक वरिष्ठ महिला रेजिडेंट डॉक्टर को जातिगत उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है. यहां सेंटर फॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च (सीडीईआर) के एक फैकल्टी मेंबर के खिलाफ रेजिडेंट डॉक्टर ने एफआईआर दर्ज कराते हुए कहा है कि फैकल्टी मेंबर ने डॉक्टर के लिए अभद्र जातिगत टिप्पणी करते हुए कहा कि तू एससी है. अपना मुंह बंद कर और काली बिल्ली की तरह मेरा रास्ता मत काट.
एम्स (AIIMS) की रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदर्श प्रताप सिंह ने दलित आवाज़ डॉट कॉम (dalitawaaz.com) से एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए इस घटना का पूरा सिलसिलेवार ब्यौरा दिया और उन्होंने इस पूरे मामले पर प्रकाश डाला. डॉ. आदर्श प्रताप सिंह ने बताया कि पीडि़त महिला डॉक्टर को पिछले एक-डेढ़ साल से यह सब झेलना पड़ रहा था और उनकी तरफ से अपने विभागाध्यक्ष से लेकर एम्स की हर उच्च कमेटी तक से बारे में शिकायत की गई, लेकिन हर बार उनकी आवाज़ को दबा दिया गया. उन्होंने स्वीकार किया कि एम्स में कहीं न कहीं एससी/एसटी डॉक्टरों को जातिगत उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता हैं.
आइये जानते हैं पूरी घटना को, जैसा की डॉ. आदर्श प्रताप सिंह ने बताया…
फैकल्टी मैंबर महिला डॉक्टर को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर बुलाता था
मूल रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश की रहने वाली महिला डॉक्टर को पिछले एक डेढ साल से यह सब झेलना पड़ रहा था. फैकल्टी मैंबर महिला डॉक्टर को जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल कर बुलाता था. इस बारे में महिला डॉक्टर ने कई बार अपने हेड ऑफ डिपार्टमेंट को भी सूचित किया, लिखित तौर पर शिकायत भी की, लेकिन हमेशा उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की गई. उन्होंने एक-दो महीने पहले अपने एचओडी को कंप्लेंट भी दी. साथ ही एम्स निदेशक, एम्स रेडिजेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन और इंस्टीटयूशन में एससी/एसटी कमेटी को भी सूचना दी. एक महीना बीत जाने के बाद भी कुछ एक्शन नहीं लिया गया.
हर इंक्वायरी में महिला डॉक्टर की आवाज़ को दबाया गया
कम से कम एक-दो हफ्ते के बाद प्राइमरी इंक्वायरी बैठाई गई. उसमें भी इंटरनल इंक्वायरी हुई और उनकी आवाज को ही यह कहकर दबाने की कोशिश की गई कि अपनी कंप्लेंट वापस ले लो, ऐसा होता रहता है. अगली कमेटी में भी इंटरनल इंक्वायरी हुई और उसमें भी वही सब हुआ और उनकी आवाज को दबाया गया. इन सभी के चलते वो काफी परेशान थीं.
एचओडी ने कभी आरोपी फैकल्टी मेंबर डॉक्टर पर एक्शन नहीं लिया
यह बार यह घटना जो हुई, एक फैकल्टी मेंबर हैं जो बार-बार महिला डॉक्टर के साथ ऐसा र्दुव्यवहार करता था. उनके बारे में कई बार एचओडी से शिकायत की गई थी, लेकिन एचओडी ने भी एक्शन नहीं लिया. उन्होंने महिला डॉक्टर की आवाज़ को दबाने में एक तरह से फैकल्टी मेंबर का साथ दिया. उन्होंने महिला डॉक्टर को परेशान करने वाले फैकल्टी मेंबर पर कोई कार्रवाई ही नहीं की.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने मांगी है पूरी फाइल
एम्स ने इस मामले में इंक्वायरी बैठा दी है. वहीं, इस मामले में दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की तरफ से एफआईआर दर्ज कर ली गई है. राष्ट्रीय महिला आयोग एवं दिल्ली महिला आयोग ने भी एम्स प्रशासन से सारे डॉक्टयूमेंट मांगे. हालांकि अभी उनकी तरफ से क्या एक्शन लिया गया, इसकी कोई आधिकारिक सूचना हमारे पास नहीं है.एनसीडब्ल्यू ने एम्स निदेशक से इस पूरे मामले के दस्तावेज उन्हें एक फाइल में सौंपने और उनकी तरफ से इस बारे में क्या कार्रवाई की गई, इसका स्पष्टीकरण मांगा गया है.
सरकार ने अभी तक नहीं दिया कोई जवाब
इस घटना को लेकर आरडीए की तरफ से सरकार को पत्र लिखकर कार्रवाई करने एवं पीडि़त डॉक्टर को न्याय दिलाने की मांग की गई, लेकिन सरकार की तरफ से अभी हमें कोई जवाब नहीं आया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को भेजे गए पत्र का जवाब अभी तक रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को नहीं मिला है.
‘लोगों की आवाज को कितना दबाया जाता है, यह बातें लोगों को पता लगनी चाहिए’
दरअसल, अब ये मेडिको लीगल केस हो गया है. पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है. हम चाहते हैं पुलिस भी प्राथमिकता के आधार पर इसमें कार्रवाई करे. बतौरआरडीए प्रेजिडेंट मैंने इन सब बातों को लोगों के बीच में रखा, क्योंकि इतने प्रतिष्ठित संस्थान में ऐसी सब घटनाओं का बढ़ना बहुत शर्म की बात है. इस बात को पूरा देश और दुनिया जाने कि इंस्टीटयूशन में इस प्रकार की चीजें कितनी बढ़ती हैं. लोगों की आवाज को कितना दबाया जाता है, यह बातें लोगों को पता लगनी चाहिए. बाकी लोग इन सब चीजों को करने से डरें और हायर अथॉरिटी को भी इसका पता चले.