नई दिल्ली : उत्तराखंड (Uttarakhand) के चंपावत जिले के सुखीढांग गांव (Sukhidhang village of Champawat district) के सरकारी स्कूल में दलित भोजन माता (Dalit Bhojan Mata) के हाथों बना मिड डे मिल (Mid Day Meal) खाने से इनकार करने वाले सवर्ण छात्रों के बाद अब दलित छात्रों (Dalit Students) ने सामान्य वर्ग की भोजन माता के हाथों का बना खाना खाने से मना कर दिया है. 21वीं सदी में जातिवाद और उसके विरोध का यह विरला मामला सामने आया है, क्योंकि पहले सवर्ण छात्रों ने ही स्कूल में नवनियुक्त दलित भोजन माता के हाथों बने खाने का बहिष्कार कर दिया था. जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए दलित छात्रों ने यह कदम उठाया. दरअसल, मामले में इस नए मोड़ का खुलासा स्कूल के प्रिंसिपल प्रेम सिंह की तरफ से उत्तराखंड शिक्षा विभाग (Uttarakhand Education Department) को भेजी गई चिट्ठी में हुआ.
चंपावत के खंड शिक्षा अधिकारी को बीते 24 दिसंबर को भेजी चिट्ठी में प्रिंसिपल प्रेम सिंह की तरफ से कहा गया कि 24 दिसंबर को कक्षा 6 से 8 तक उपस्थित कुल 58 छात्र/छात्राओं में से अनुसूचित जाति के 23 छात्र/छात्राओं (Scheduled Caste Students) ने मिड डे मिल (Mid Day Meal) का बहिष्कार किया है. उनका कहना है कि अगर अनुसूचित जाति की भोजन माता (Dalit Bhojan Mata) के पकाए भोजन से सामान्य वर्ग के छात्रों को नफरत है तो हम भी सामान्य वर्ग की भोजन माता के हाथ का खाना नहीं खाएंगे. हम अपना लंच बॉक्स साथ लेकर आएंगे.
उधर, दिल्ली सरकार ने जातिवाद की इस घटना का शिकार हुईं दलित भोजन माता (Dalit Bhojan Mata) सुनीता का साथ देते हुए उन्हें सरकारी नौकरी ऑफर की है. दिल्ली के समाज कल्याण, महिला एवं बाल विकास मंत्री राजेंद्र गौतम ने शनिवार को यह घोषणा की. उन्होंने सीएम पुष्कर सिंह धामी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए और कहा कि वह काबिल नहीं हैं और लोगों को न्याय नहीं दे सकते. वह धर्म और जाति की राजनीति करते हैं. बच्चों को समझाने या महिला का ट्रांसफर कर दिए जाने की बजाय उन्हें नौकरी से ही निकाल दिया गया, जबकि पूरी प्रकिया के तहत सुनीता जी का चयन हुआ था, इसके बावजूद उन्हें नौकरी से हटा दिया गया.
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने ट्विटर पर जानकारी साझा करते हुए कहा है कि तथाकथित शोषक जातियों के ग्रामीण इस बात के लिए तैयार हो गए हैं कि भोजनमाता की नियुक्ति में वे कोई विवाद पैदा नहीं करेंगे और अनुसूचित जाति की भोजन माता खाना बनाएगी तो भी उनके बच्चे खाने का बहिष्कार नहीं करेंगे.
इस बीच जातिवाद और छुआछूत के इस बड़े मामले को संज्ञान में लेते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुमाऊं के DIG नीलेश आनंद भरने को स्कूल का दौरा करने और घटना की जांच करके दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है.
दरअसल, उत्तराखंड के इस सरकारी स्कूल में ऊंची जाति के छात्रों ने दलित कुक के पकाए गए भोजन को खाने से इनकार कर दिया था और ये छात्र लंच के लिए घर पर बना भोजन लेकर स्कूल आने लगे थे. इसके बाद दलित भोजना माता सुनीता को नौकरी से हटा दिया गया था और उनकी जगह सामान्य वर्ग की महिला का नियुक्ति की गई थी. इस मामले में अफसरों का कहना है कि कुक को ऊंची जाति के छात्रों के बहिष्कार के कारण नहीं हटाया गया, बल्कि इसलिए हटाया गया क्योंकि उसकी नियुक्ति मानदंडों के तहत नहीं थी.
अनुसूचित जाति की सुनीता देवी को कुछ दिनों पहले सुखीढांग इलाके के जौल गांव के सरकारी स्कूल में भोजन माता के तौर पर नियुक्त किया गया था. उन्हें कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए मिड डे मील तैयार करने का काम सौंपा गया था.
स्कूल के प्रिंसिपल सिंह ने बताया कि सुनीता की ज्वाइनिंग के पहले दिन ऊंची जाति के स्टूडेंट्स ने भोजन किया था. हालांकि, दूसरे दिन से उन्होंने भोजन का बहिष्कार शुरू कर दिया. स्टूडेंट्स ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह समझ से परे है. कुल 57 छात्रों में से अनुसूचित जाति के 16 बच्चों ने उसके हाथ से बना खाना खाया.
भोजन का बहिष्कार करने वाले स्टूडेंट्स के पेरेंट्स ने इसे लेकर मैनेजमेंट कमेटी और प्रिंसिपल पर आरोप लगाया है. उनका कहना है कि ऊंची जाति की योग्य कैंडिडेट को जानबूझकर नहीं चुना गया. स्कूल के अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र जोशी ने कहा, “25 नवंबर को हुई ओपन मीटिंग में हमने पुष्पा भट्ट को चुना था, जिनका बच्चा स्कूल में पढ़ता है. वह भी जरूरतमंद थीं, लेकिन प्रिंसिपल और स्कूल मैनेजमेंट कमेटी ने उसे दरकिनार कर दिया और एक दलित महिला को भोजन माता नियुक्त किया.”
सरकारी स्कूलों में स्टूडेंट्स की अटेंडेंस बढ़ाने और उन्हें पौष्टिक आहार देने के लिए मिड डे मील की व्यवस्था की गई है. सुखीढांग हाई स्कूल में रसोइयों के दो पद हैं. पहले से काम कर रही कुक शकुंतला देवी के रिटायर होने के बाद सुनीता देवी की नियुक्ति हुई थी.
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