आखिर गांधी और आंबेडकर में मतभेद क्यों थे?

gandhi and ambedkar

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को देश के राष्ट्रपिता के तौर पर हम सभी जानते हैं और बाबा साहेब आंबेडकर (Baba Saheb Ambedkar) को भारतीय संविधान के निर्माता के तौर पर. अक्सर कहा जाता है कि आंबेडकर और महात्मा गांधी में वैचारिक मतभेद थे. वक्त के साथ आंबेडकर का गांधी के प्रति क्या नजरिया था ये बहस का विषय बनकर रह गया है. बाबा साहेब आंबेडकर, महात्मा गांधी के प्रति क्या नजरिया रखते हैं इसको लेकर उन्होंने बीबीसी को एक इंटरव्यू दिया था. आंबेडकर ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि वो गांधी से हमेशा एक प्रतिद्वंदी के तौर पर ही मिलते थे. उन्होंने इस बात का भी दावा किया कि प्रतिद्वंदी होने के कारण ही वो बाकि लोगों के मुकाबले गांधी को बेहतर तरीके से जानते थे.

आंबेडकर ने साफ शब्दों में कहा था कि आमतौर पर भक्तों के रूप में उनके पास जाने पर कुछ नहीं दिखता, सिवाय बाहरी आवरण के, जो उन्होंने महात्मा के रूप में ओढ़ रखा था. लेकिन मैंने गांधी को सिर्फ एक इंसान के तौर पर देखा है और मैंने उनके अंदर के नंगे आदमी को देखा है इसलिए मैं इस बात को कह सकता हूं कि मैं गांधी को बेहतर जानता हूं.

दोहरी भूमिका निभाते थे गांधी
इंटरव्यू के दौरान आंबेडकर ने कहा था कि गांधी दोहरी भूमिका निभाते हैं. आंबेडकर ने उदाहरण देते हुए कहा था कि महात्मा गांधी युवा भारत के लिए दो अखबार निकाले थे. पहला था अंग्रेजी अखबार हरिजन और दूसरा था गुजराती दीनबुंधी. गांधी ने अंग्रेजी अखबार में खुद को जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता का विरोधी, लोकतांत्रिक व्यक्ति बताया था. हालांकि इसके उलट जब गुजराती अखबार को पढ़ा जाए तो उसमें गांधी रूढ़िवादी, जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म या सभी रूढ़िवादी सिद्धांतों के समर्थक थे.

महात्मा गांधी को खारिज नहीं किया जा सकता है…
संविधान लेखन के दौरान आंबेडकर ने दलितों पर होने वाले अत्याचारों को देखते हुए छूआछूत के उन्मूलन के साथ समान अवसर पर जोर दिया था. संविधान का निर्माण होने के बाद आंबेडकर ने कई मंचों पर कहा कि गांधी इसके विरोधी थी. आंबेडकर का कहना था कि खुले मंचों पर गांधी छूआछूत की बातें सिर्फ इसीलिए किया थे, ताकि कांग्रेस से ज्यादा से ज्यादा अस्पृश्य लोग जुड़ सकें.

गांधी एक कट्टरपंथी सुधारक नहीं थे और उन्होंने ज्योतिराव फूले या फिर डॉक्टर आंबेडकर के तरीके से जाति व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास नहीं किया. हालांकि कई ऐसे उदाहरण है जब गांधी ने दलितों को अपने साथ खड़ा किया, लेकिन आंबेडकर ने हमेशा इसे राजनीति से जोड़कर देखा.

अखंडता और एकता को कायम रखने में विश्वास
कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आंबेडकर ने शुरुआत से ही देश की अखंडता और एकता को कायम रखने में विश्वास रखा. वो इस बात को जानते थे कि एक दिन उन्हें दुनिया से जाना है इसलिए समाज के लिए कुछ अच्छा किया जाए ताकि सबको एक समान अवसर प्राप्त हो सकें.

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