जाति आधारित अत्याचार की शिकायत पर पुलिस यदि तुरंत एफआईआर न करे तो अगले ही दिन पुलिस अधीक्षक या डीसीपी को सूचित करें तथा साथ ही SDM को भी सूचित करें.
इस पर भी यदि FIR दर्ज नहीं हो पाती तो तुरंत ही जिला कोर्ट में SC/ ST Act की स्पेशल कोर्ट (सेशन) में शिकायत कर देनी चाहिए. मालूम हो कि देश के हर जिले में एक सेशन कोर्ट SC/ ST Act मामलों के लिए स्पेशल कोर्ट निर्धारित है.
आला अधिकारियों के दखल के बाद हुई FIR के बाद यदि पुलिस तुरंत पीड़ित के बयान और गवाही दर्ज न करे औऱ इसकी प्रमाणित प्रति न दे तो भी स्पेशल कोर्ट में शिकायत कर देनी चाहिए, क्योंकि इससे कभी न कभी अभियुक्त द्वारा आपराधिक न्याय प्रणाली में बचाव के रास्तों से फ़ायदा उठाने की गुंजाइश बढ़ जाती है, जबकि पीड़ित के बयान व गवाही स्पेशल कोर्ट में दर्ज हो जाने के बाद पुलिस द्वारा इसे निष्प्रभावी करने की तथा अभियुक्त द्वारा तोड़ने-मरोड़ने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है. मामला कोर्ट में पहुंच जाने पर अभियुक्त पर दबाव बढ़ जाता है तथा पुलिस भी उससे पल्ला झाड़ लेती है.
कानूनी जिम्मेदारी के बंधन के चलते यदि पुलिस FIR कर भी लेती है तो विवेचना मे अभियुक्त को फायदा पहुंचाने की नीयत से क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर सकती है या कभी चार्जशीट दाखिल करते हुए बयान व तथ्यों को हल्का करके केस भी कमजोर कर सकती है.
मालूम हो कि संज्ञेय अपराध (कॉग्निजबले ऑफेंस) होने पर CrPC की धारा 154 में पुलिस FIR दर्ज करती है और संज्ञेय अपराध होने पर भी अगर पुलिस अपराध दर्ज नहीं करती तो अपराध की जानकारी इलाके के अधीक्षक (सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस) को देने के बाद CrPC 156(3) के तहत पीड़ित न्यायालय से पुलिस को केस दर्ज करने के निर्देश देने के आग्रह कर सकता है. दोनों ही स्थितियों में पुलिस विवेचना कर कोर्ट में रिपोर्ट पेश करती है.
यदि पुलिस को लगता है कि अपराध नहीं हुआ तो क्लोजर रिपोर्ट लगाकर केस बंद करने की सिफारिश करती है. यदि पुलिस को लगता है कि अपराध हुआ है तो चार्जशीट पेश करती है और अभियुक्त पर मुकदमा चलाने केस की सिफारिश करती है.
चार्जशीट दाखिल करने की स्थिति में पुलिस पर दारोमदार होता है कि वह अपराध साबित करे, लेकन आधिकारिक आंकड़े एक निराशाजनक स्थिति पेश करते हैं.
यदि पीड़ित को पुलिस की भूमिका पर संदेह हो तो CrPC 154 व 156(3) की प्रक्रिया के बजाय CrPC 200 की प्रक्रिया के तहत सीधे ही स्पेशल कोर्ट में शिकायत लगा देनी चाहिए. इसमें पुलिस का रोल नगण्य होता है, इसलिए अभियुक्त द्वारा पुलिस से कोई नाजायज फायदा उठाने की गुंजाइश भी न के बराबर ही रहती है.
CrPC 200 की प्रक्रिया में पीड़ित व्यक्ति खुद (या वकील के माध्यम से) सीधे ही कोर्ट में अपने बयान न्यायालय के समक्ष दर्ज करवाकर और बाकि गवाहों के बयान और साक्ष्यों को पेश कर अभियुक्तों को समन करवाने की अपील कर सकता है.
अपने इलाके में कार्यरत जिम्मेदार NGO/आंबेडकरवादी मिशनरी सज्जनों से मार्गदर्शन व मदद ले सकते हैं. दलित आवाज़ (DalitAwaaz.com) भी अपनी जिम्मेदारी निभाने को सदैव तत्पर है.