नई दिल्ली : अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुनाते हुए व्यवस्था दी है कि अगर एससी/एसटी एक्ट (SC/ST Act) के तहत दोषी ठहराए जाने से पहले पीड़ित और आरोपी के बीच उचित समझौता हो जाता है, तो संवैधानिक अदालतें मामले को रद्द कर सकती हैं. एससी/एसटी एक्ट (SC/ST Act) के मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ऐसी टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि आने वाले समय में अधिनियम से जुड़े मामलों के फैसलों में यह व्यवस्था आधार बनेंगी.
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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने यह फैसला सुनाया. हालांकि उन्होंने कहा कि सवर्णों की तरफ से एससी और एसटी का उत्पीड़न करना एक “निराशाजनक वास्तविकता” है. कोर्ट ने दोषी और शिकायतकर्ता के बीच हुए समझौते के आधार पर एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम (Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989) के तहत साल 1994 की सजा को रद्द कर दिया.
एनबीटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, ‘यह एक्ट निराशाजनक वास्तविकता की मान्यता है कि कई उपाय किए जाने के बावजूद, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को उच्च जातियों के हाथों कई तरह के अत्याचारों का शिकार होना पड़ता है.
एससी/एसटी अधिनियम (SC/ST Adhiniyam) पर शीर्ष अदालत ने कहा कि आमतौर पर अधिनियम जैसे विशेष कानूनों से उत्पन्न होने वाले अपराधों से निपटने के दौरान कोर्ट अपने दृष्टिकोण में बेहद चौकस होगी.
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चीफ जस्टिस के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि “जहां कोर्ट को यह लगता है कि क्राइम हालांकि एससी/एसटी अधिनियम (SC/ST Act) के तहत कवर किया गया है, प्राथमिक रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है, या जहां कथित अपराध की जाति के आधार पर नहीं किया गया है. पीड़ित, या जहां कानूनी कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, अदालत कार्यवाही को रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है.
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