नई दिल्ली. आप दलित हैं, सामाजिक तौर पर ऊंचे सुमदाय के साथ बैठ नहीं सकते, साथ रह नहीं सकते. ये बातें अक्सर लोग एक-दूसरे के साथ करते हैं, लेकिन इसी सामाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन चीजों से ऊपर उठकर आसमान को छूने का प्रयास करते हैं और सफल भी होते हैं. हम दलितों के लिए आंबेडकर के बाद कई ऐसी प्रेरणाएं हैं जिनकी कहानी जानना बहुत जरूरी है.
ऐसी ही कहानी है केजी बालाकृष्णन की. भारत के 37वें मुख्य न्यायाधीश रहे बालाकृष्णन ने 14 जनवरी 2007 को शपथ ली थी. जस्टिस कोनाकुप्पकटिल गोपीनाथन बालाकृष्णन मुख्य न्यायाधीश पर पहुंचने वाले पहले दलित व्यक्ति हैं.
शपथ ग्रहण कार्यक्रम में पहुंची थी मां
अपने बेटे के शपथ ग्रहण को देखने के लिए जस्टिस बालाकृष्णन की मां केएम सारदा भी व्हील चेयर पर बैठकर इस कार्यक्रम में पहुंची थीं.
12 मई, 1945 को केरल के कोट्टायम ज़िले के एक गाँव में जन्मे न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने एर्नाकुलम के महाराजा लॉ कॉलेज से क़ानून की शिक्षा ली. उसके बाद उन्होंने एर्नाकुलम में ही वकालत शुरू कर दी. बाद में वो केरल हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त किए गए. सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त किए जाने से पहले न्यायमूर्ति बालाकृष्णन गुजरात और मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके थे.
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अपने करियर में बाबाकृष्णन ने कई बार दलितों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, बालाकृष्णन ने कहा था कि राजनीतिक दल दलितों की ताकत को पहचानते हैं. उन्होंने कहा था कि बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने जो ताकत संविधान के जरिए दलितों को दी है, उसका सही सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं.
अपने हक के लिए लड़ना होगा
कई कार्यक्रमों में उन्होंने कहा कि भारतीय समाज कई हिस्सों और समुदायों में बंटा हुआ है. इसीलिए समाज के वंचित समुदाय को अपना हक पाने के लिए लड़ना पड़ेगा. छोटी लड़ाई और आपसी मन-मुटाव को छोड़कर बड़ी लड़ाई को तार्किक तरीके से लड़ने के लिए खुद को सक्षम बनना होगा.
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